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गुलदस्ते - जरफत.
[ एक कंजूसका - लतिफा, ]
२४ - एक गांव में एक कंजूस रहताथा - जो खर्च ज्यादह-नहोजाय इसखयाल से पांवमें जूतातक नहीं पहनताथा, जब जंगलमें जाता आताथा इसकदर कांटे लगजाया करतेथेकि - पांवमेसें लोहू बहने लगताथा, मगर वहां कांटे नहीं निकालताथा, घर आनकर निकालताथा, इस खयालसेकि - दस पांचरौजके काटे इकठे होजायगें तो एकरौजी चिलममें बतोर लकडीके कामदेयगें, एकरौजका जिक्र है उसका एक दोस्त दुसरे गांवकी सफरकों जाने लगा, कंजूस कहता है मेरे जैसा कोई और कंजूस दिखपडेतो मुजे खबर देना मेरी लडकीकी सादी करनी है, दोस्त जब दूसरे गांवको गया तो वहां एक ऐसे कंजुसको देखाकि जो रसोडेमें बैठा हुवा है, और घीका भराहुवा वर्तन सामने रखकर रोटी रुखी खाता है, दोस्तने खयालकिया यहभी पुरा कंजुस है, जब सफरसे वापिस आयातो अपने दोस्तों कहता है, तुमसेभी एक ज्यादह कंजुस मैनेदेखा, जो रोटी - घीके सामने दिखाकर रुखी खाताहै, कंजुसने कहा यहभी मेरेलाइक नही, क्या ! ताज्जुब है कि कभी - उसघीमें रोटी डुबोदेवे और खावे, इससेंभी कोइ ज्यादह कंजूस मिलेतो मुजे कहना, देखिये ! दुनिया में ऐसे भी कंजुस होते है - जो - अपने खानपान के लियेभी रुपया खर्च नही करसकते, धर्ममें - तो - क्या खर्च करेंगें,
( ३८७ )
[ एक शैर और सूअरका मुकाबला, ]
सत्रे क्रोडमृगाधिपौ च मिलितौ ब्रूते हरिं सूकरो, वादं त्वं वदरे ! मयासह हरे नो चेन्मया हारितं, श्रुत्वा तद्वचनं हरिर्वदति तं त्वं याहिरे ! सूकर, लोकान् ब्रूहि मयाजितो मृगपति जनंति मे ज्ञा बलं,
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