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________________ (१०) दिवाचा. चाहिये, कोई महाशय इससे ज्यादह खुलासा देवे-तो-उसको मंजूर करना चाहिये, क्योंकि-दुनियामें-एकसेएक ज्यादह अकलमंद मौजूदहै, इस किताबके पढनेसे गोया मुल्कोंकी सफर घरवेठे हासिल होसकेगी, मुंजे इसके लिये वहुत अर्सेतक सफर करनापडा, और बहुतसी किताबोंका मजमून अकजकरके इसमे लिखनेका इत्तिफाक । श्रीयुत-श्रावक-हवसीलालजी-पानाचंदजी साकीन बालापुर मुल्क वराडने इसकिताबको छपवाकर जाहिरकिइहै, और कुल्लखर्चा उनीदियाहै, उनकी तस्बीरभी इसकितावमें दिइगइहै, आलीहिम्मत श्रावकहो-तो-ऐसेहो, जो-धर्मके काममें इसकदर खयाल रखतेहै, नकशा हिंदुस्थानकाभी इसकितावकी अवीरमें दर्जकरदियाहै, ताकि तमामशहर-व-शहर बखुबी मालूम होसकेगे वाद चंदउमदा लतिफे निसकानाम गुलदस्तेजराफत देखोगे, पढकर दिल खुशहोगा, राग रागिनीके भेद और कुछ स्तवनभी अछे कवियोंके बनाये हुवे इसमे दर्जकियेहै अलहासिल ! ज्यादह लिखनेकी चंदाजरुरत नही. जब किताब नाजरीनोकी पाकनजरोंसें गुजरेगी. उमीदहै जरुर पसंददीदा होगी, जोजो महाशय इस कितायके अबलसे ग्राहक हुवेहै उनके मुबारिक नामभी अखीर में दर्ज करदियेहै, ___मुल्कोंकी सफरकरनेसे आदमीको चतराइ हासिल होती है, तीर्थभूमिमें जानेसे दिलीतकलीफ रफाहोकर धर्मपर एतकात बढताहै, जिसजगहपर तीर्थकरोन और मुनिमहाराजोने ध्यान कियाहै वहांपर जानेसे धर्मपर दिल रजुहोताहै, न-मालूम-जींदगी किसरीज दगादेजायगी, और इस चोलेका गीरना किसजगह होगा, इसपर खयालकरतेहै-तो-दिलपर जरुरधर्मका असरहोताहै, कोइशख्श नया मंदिर तामीर करवाताहै. कोइ-मुत्ति-बनवाताहै, में-जैनतीयाकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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