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दिवाचा.
संवत् (१२९८) के अर्सेमें राजावीरधवलके दिवान वस्तुपाल तेजपालने तीर्थआबुपर बडे खूबसुरत जैनमंदिर तामीरकरवाये, जो अबवक मौजूदहै, ये दोनों भाइ-आसराजके बेटे और इनकी वाल्दाका नाम कुमारदेवीथा, वस्तुपाल तेजपालने अठरांवर्स तक दि. वानगिरि किइ, और तेरहदफे तीर्थयात्राके लिये संघ निकाले, इस कितावके पृष्ट (१२५) पर तवारिख आबुके बयानमें-जो-शकुनिका विहारका लेखछपगयाहै पढनेवाले महाशय इसको आरासण तीर्थका लेख समजे, क्योंकि-शकुनिका विहारका आकार आबुपहाडपर तेजपालके बनायेहुवे मंदिरकी परकम्मामेंभी है, और आरासणतीर्थके नेमनाथजीके मंदिरके गुढमंडपमेंभी है, राजाओके तामीर करवायेहुवे मंदिरोमें दिवारोंपर पेस्तर गजथर-पा-अश्वथर जरूर लगाये जातेथे. देखो ! आरासण तीर्थमें तीर्थकर नेमिनाथजीके मेंदिरमें गजथर लगाहुवाहै,___ अयोध्या-राजगृही-चंपा-हस्तिनागपुर वगेरा नगरीये-जोजैनशास्त्रोमें लिखी है, जमाने हालमेंभी वही है, दुसरी नही, अलबत्ते ! पेस्तर वडीथी, अबछोटी रहगइ, औरभी कइनगर जैसे हैजो-पेस्तर बडेथे, अब छोटेरहगये, जो-लोगकहते है-ये उपरलिखी नगरीयां दुसरीजगह होनाचाहिये, तो किसजगहपर है उसका सबुत पेश करे, भाषांतर राजतरंगिणी-जो-संवत् (१९५४)में बंबइ गुजराती प्रिंटिंग प्रेसमें छपाहै, पृष्ट (१८) पर फुटनोटकी जगह बतलाया है कि-पेस्तर जमाने अशोकके मुल्क काश्मिरकी राजधानी श्रीनगरमें छलाख मनुष्य आवादथे, गंगासिंधुनदीकी लंबाइचौडाइ पेस्तर ज्यादहथी अब कमरहगइ, इसीतरह कइ बडेबडे शहर छोटे होगये है, लंकानगरी जमाने रावनके बडी रवन्नकपरथी, आजकलबो-रवन्नक नहीं रही, इसीतरह उपर लिखीहुइ बातमी समजना
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