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________________ (८) ... .... ........... AA A A दिवाचा. कि-राजा-भीमदेवके दिवानथे, संवत् (१०८८) के अर्सेमें उनोने आबुपहाडपर बडे खूबसुरत जैनमंदिर बनवाये, संवत् (१९८३) के अर्सेमें महाराज सिद्धराजजयसिंहने शहरपाटन-मुल्कगुजरातमें तीर्थकर रिषभदेवमहाराजका मंदिर निहायत उमदा बनवाया, और उसमें बडी आलिशान मूर्ति तीर्थकर रिषभदेवजीकी तख्तनशीन किइ, जैनाचार्य-श्रीदेवमूरि महाराजकी हयातीमें नाहडमंत्रीने कोरंटक वगेरा नगरमें बहुतसें जैनमंदिर तामीर करवाये, गुर्जरदेशभूपावली ग्रंथके (४१) के श्लोकमें बयानहै कि-संवत् (११९९) में राजाकुमारपाल हुवा, जो जैनमजहबपर निहायत साबीतकदमथा, उसकी सलतनतका तख्त अणहिल्लपुरपट्टन मुल्कगुजरातमेंथा, गुरुहेमचंद्राचार्यकी धर्मतालीमसें उसके दिलकी तसल्ली होगइथी कि-मुकाविले धर्मके दुनियामें कोइचीज नही, इसीसबब जैनग्रंथोमें परमार्हत कुमारपालभूपाल कहकर इसको लिखाहै, इसने शहर अणहिल्लपुरपटनमें त्रिभुवनविहार नामका मंदिर बडीलागतका तामीर करवायाथा. हेमचंद्राचार्य संवत् (१२२९) में देहांतहुचे, और उनकी उमर (८४) वर्सकीथी, राजाकुमारपाल गुरु हैमचंद्राचार्य के फरमानपर इसकदर पावंदयाकि-जो-कुछ-वे-कहतेथे मंजूर करताथा, चुनाचे ! एकदफा राजाकुमारपालने तीर्थतारंगापर बहुत उंचा जैनमंदिर बनवाना शुरु किया, कितनाक बनभी गयाथा, इत्तिफाकन ! गुरु हैमचंद्राचार्यभी-वहां-तशरीफलाये, और मंदिरकों देखकर कहनेलगेकि-बहुतऊंचे मंदिरकी उमर कमहोती है, मुनासिब है अब इसकों ज्यादहउंचा नही बनाना, राजाकुमारपालने उसीवख्त जितना बनायाथा उतनाही कायमरखा, और उसपर शिखर बनादिया, देखो गुरुके फरमानपर राजाकुमारपाल किसकदर पावंदथा ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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