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________________ दिवाचा. (११) तपसीलवार हकीकत लिखकर आमजैनोके सामने रखताई,-ताकिहरेकश्रावककों तीर्थयात्राकोलिये ख्वाहेस पैदाहो, तीर्थों में तरहतरह के मंदिर-मुत्तिये-चरनपादुका-उंचेउंचे शिखर-कारिगीरि-गुफानदी-और-पुराने शिलालेख देखकर दिलपर जरुरअसर-होगा, इरादा शुभहोगा, और शुभइरादेसे पुन्यानुबंधिपुन्य हासिलहोगा, यही सबबहै, इसकितावके बनानेका, किताब-जैनतीर्थगाइडका लि. खाण मैने अंदाज आठवर्स पेस्तरसें तयारकियाथा, मगर मुल्कोंकी सफरमें कितनाक जातारहा, जिसकी वजहसे दुलारा तीयोंमें जाकर तलाश करनापडी, इसलिये इसकिताबके छपनेमें इतनीदेरी हो आमलोग इसकिताबकों पढकर फायदा हासिलकरे,-... F ब-कल्म-विद्यासागर-न्यायरत्नं मुनि-शांतिविजय- .... [मुनिमहाराजोकि तारीफपर.] (सवैया,-) धातन कलधौतबडा-रत्नोंबिच भाषतहै वरहीरा,. . कुंजरमांही कहे हरिकोंइभ-केशरीसिंहमहाबलबीरा, फुलनमें अरविंदवडा-नगकंबलसें नही दिसतचीरा, त्यूं सबसंघविषे श्रुतचारित-धारमुनीश्वर शोभतधीरा,... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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