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हिदायत-उल-आम.
(१३ )
जब जियारतकी जगह पहुचनाओ सिरझुकाकर सिजदा करो. और इबादतकरोकि-शुक्रहै आजकारोज जोमुजे कमनसीवकों इसती. र्थकी जियारत नियामतहुइ, तीर्थोकीमीटी सीरकोलगनेसें तुमारेबुरे काँकी रजअलगहोगी. तीथा में फिरनेसे तुमारा चौरासीलाखनीय योनिमें फिरना कमहोगा, औरमोक्षकाराला हासिलहोगा, पूजनगीत-गान-नाचसुजग जोतुमसेवने तीथा धर्मकेकामकरो. तीर्थयात्रामें पर्दामतरखो, दिलको बुरेइरादोसे वचाओ.-यहीअसलीप है, -मगरजोलोग दौलतकी गर्मीसे सरगर्महोरहेहै-के-इसबातकों करमानसकतेहै, ! तीर्थयात्रामें जो-दुखीदरिद्री-बैठेरहतेहै उनकोंभी कुछन-कुछ-देतेरहो, ऐसामतकरोकि-वे-तुमकों-अमीरसमझकरकुछसवालकरे, और तुमचुपहोकर मुंहमोडते चलेजाओ, तीर्थमेंजाकर कमसे कम दोतीनयात्रा जरुरकरो, ऐसायतकरोकि-एकही-यात्राकरके दु. सरेरौज घरकोंचल दिया. कइऐसेभीशग्है -जो-मंदिरोंगये-और दो -चावल के दाने फककर चलेआये.-न इबादतकिइ-न-ध्यानकिया, और-न-पूजनकिया. सीर्फ ! देवकेसामनेगये औरचलेआये. मंदिरोमेजाकर थुकनानहीचाहिये, इससेदेवकी बेअदबीहोतीहै, किसीमंदिरकी दिवारपरअपनानामभी मतलिखो, खुशनसीवोंने उमदामंदिर वनवाये और तुमने अपनानामलिग्वकर उसमंदिरकीदिवारको कालि करदिइ, क्याग्ववढंगहै, ? तीर्थों में पहाडोपर-या-चरणपादुकाकी जगह -सबजमीन-पाकसमझो. ऐसाशक मतलाओकि-क्या ! इसीजगह जहांकि-मंदिरवनाहै-तीर्थकरोंकानिर्वाणहुवाहोगा, गरजकि-तमामपहाड और तीर्थभूमि पूज्यभूमि समझो, लाखोंकराडोवर्सहोगये हमेशा वहीटोंक उसीजगहवनीरहीहै-ऐसाहठ-भतकरो, शजय-गिरनारआबु-समेतशिखरवगेरातीयाके नकशे-जो-छपेहुवेहोतेहै शाथरखो, ताकि-पहाडपरचढकर मालूमहोजायकि-यह-मंदिर इसतीर्थंकरमहाराजकार-यह अमक महाराजका-हे,
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