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परिसह-तीर्थंकर-महावीर-स्वामीके. (३०५ ) .. कदम-और-छत्री जेरेजमीन होगइ, कदमभी नहीरहे और तीर्थ वीछेद होगगा, ए ! नाजरीन " एसीजगहपर तीर्थकी तरकी जानोमालसे करनाचाहिये, चुनाचे बाजेलोगोने वडेवडे तीर्थोमें रुपया खर्चकर बडे आलिशान मंदिर बनवाये मगर ऐसे तीर्थोमें तरही करना लाय क तारीफके है,
तीर्थकर महावीर स्वामीके पांवकों जिसजगह चंडकोसियासांप-डसाथा-यह-माजराभी मुल्क पुरवमें हुवाथा, जोलोग कहते मुल्क मारवाडमें करीब नादिया गांवके यह माजरा गुजराथा विल्कुल गलत है, बल्कि ! कनखल कस्बेके पास तीर्थकर महावीर स्वामीके पांवकों चंडकौशिये सांपने काटाथा, कल्पसूत्रमें पाठहैकि
" ततो विहरन् श्वेतंव्यां गछन्-जनार्यमाणोपि कनकखलतापसाश्रमे चंडकौशिक प्रतिवोधाय गतः" -सचप्रभुं दृष्ट्वा दृष्ट्वा दृष्टिज्वालां सुमोच-मुक्त्वाच मापतन्नयं-मां-आक्रामतु हत्यपसरति तताभृशं कुन्डो भगवंतं ददंश, ___ तीर्थंकर महावीरस्वामी सफर करते हुवे जब श्वेतांबी नगरी तर्फ जातेथे लोगोने कहा आप इधर तशरीफ-न-लेजाइये, उधर एक बडा जहरीला सांप रहता है, मुआदा असा-न-होकि-आपकों डस जाय, तीर्थकर महावीर स्वामीने इसबातका कुछ खयाल नही किया और उसी तर्फकी राह लिइ, जहां उससांपका हुदथा, उसजगह जाकर कयाम किया और ध्यान करने लगे, इस असनामें सांप आपने हुदसे बहार निकल आया और देखाकि-कोइ महात्मा खडेहै, गुस्सा होकर उनकी तर्फ आया, उसके दिलमें यहभी खयाल आया रहताथा-कहीं-ये-महात्मा मुजपर-न-गिर पडे, जिससे-में-दष जाउ, इसवजहसे कुछ पीछेभी हठता जाताथा, तीर्थकरमहावीर अपने ध्यानमें निहायत साबीत कदमथे, सांपने आखीरकार नजदीक
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