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________________ ( ३०४ ) परिसह-तीर्थकर-महावीर स्वामीके. बेलोकों-न-पाया. क्योंकि-के-जंगलको चलेगयेथे, तीर्थकर महावीरसे दर्याफ्त करने लगाकि-ने-बैलोको आपके जेरेजिम्मा कियाया-कहांगये ? तीर्थकर महावीरने उसबख्तभी कुछजवाब नहीदिया, तब उसने गुस्साखाकर लकडेकी-दो-मेखे-उनकेकानमें लगादिइ. तीर्थंकर महावीर स्वामीके जीवने-जो-त्रिपष्टवासुदेवके जन्ममें शय्यापालके कानों में गर्म कभीर उलबादियाथा-बह-कर्म इनजन्ममें उनके पेशआया, गोवालिया वेलोकी तलाश करताहुवा अपने बतनको गया. और तीर्थंकर महावीर स्वामी वहाँसे रवाना होकर मध्यम अपापानगरीको गये, वहां एक-सिद्धार्थनामके-साहुकारका घरथा उसकेघर जबमिलाको जातेथे एक-खरकनामकेहकीमने देखाकि-इनके कानोमें कुछ तकलीफसी माम देती है, जब खूबगोरसे देखातो मालूमहुवा किसीने इनके कानोमें-मेखेमगादिइहै, हकीम-खरक-और-साहुकार सिद्धार्थने सलाह किइकि किसीसुरत मेखे उनके कानासे निकाल देना चाहिये, तीर्थकर महावीरस्वामी भिक्षालेकर जब जंगलकीतयः रवाना हुने-कीम और साहुकार चंदनोकरोको अपने हमरा लेकर उनके पीछे गये, और मेखे निकालनेकी तजवीज किड, बडी कोशिशकेसाय संडासीयोसेखींचकर मेखे वहार निकाली,-उसयस तीर्थकर महावीर स्वामीकों अजहद तकलीफ झुइ. कील खरकन्दै उशीवख्त संरोहिणी जडीका लेपलगाकर जखमकों चंगाकरदिया. इस उमहाकार रवाइ से हकीम और साहुकारने बहिरू पाइ, और गोवालियने अपने कियेकी सजा दोजक पाया, उसकलसे-यह-जगह तीर्थगाहबनी और मंदिर बनायागया, तीर्थमाला बनानेवाले महाराज सौभाग्यविजयजी फरमाते है जबकि-हमने-जियारतकिइथी तीर्थकर महावीरस्वामीके कदमोकी छत्री चहापर कायमयी, और सुनायगांवसे राजग्रही नगरी ( ११) कोशके फासलेपर वाकेथी, आजकल वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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