________________
तवारिख-तीर्थ-आबु. ( १२१ ) लिखाहै संवत् [१४०८] मे-ये-तामीरकिइगइ. औरजैनाचा र्यकक्कसुरीजीने इसकीप्रतिष्टाकिइ. परकम्मामें जोगावनजीनालयके मंदीरखने हुवेहै, कइजीनालयोकेदरखजेपर संवत् [१३७८] काएकपरसंवत् [१३८२] काएकपर संस्कृतजबानमें [१३] काव्य लिखेहुवे औरअखरिमें ऊसकीबुनीयाद संवत् [१२०१] कीबतलाइहै. एकजिनालयके दखजे की दाहनीतर्फ कालेरंगके पथ्थरका एकलेखहै उसमें संवत् [१३५०] औरइसकेआगे-महाराजाधिराज-सारंगदेव
और-विशलदेवका नामहै. एकजिनालयके बहारदरबजेकी बायीतर्फ चौमुखाजीकेपास डुंगरपुरीपथ्थरपर (१६) श्लोकलिखेहुवे है,
इसजिनालयके दरखजेकी दाहनीतर्फ चरणपादुकाके पासएककाले पथ्थरका लेखहै जिसमे [ ४० ] काव्य और संवत् [१२७९] लिखाहै. एकजिनालयके ऊपर संवत् (१२४५) वैशाखवदी पंचमांगुरूवार लिखाहै, औरउसके थोडेदुरनीचे संवत् ( १३७८ ) का लेखहै, जिसमे जैनाचार्य धर्मघोषसूरि-और-ज्ञानचंद्र सूरिजीकेनामहै, एकजिनालयके दरखजेपर संवत (१२४५) का लेख दो-लंबी-सतरे और उसमे चारश्लोकलिखेहुवे है, अवलसतरमे खंडेरगछ-महति-यशोभद्र
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com