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( १२० ) तवारिख-तीर्थ-आबु, दाऔर बेंमीशाल बनाइहै-जिसको देखकर बडेबडेकारीगरभी चकितरहजातेहै, आलादर्जेकी कारीगीरीकरके कारीगीरोने ऐसाकमालकियाकि-ऐसीकारीगीरी दुनियामें कम नजरआतीहै, परकम्मामें-चारोतर्फ बावनजिनालय मंदिर बनेहुवे हरेकमें जिनेंद्रदेवोकी पदमासनमूर्तिये जायेनशीनहै, मंदिरके अंगनमेंजो रंगमंडपहै (४८) खंभेलगेहुवे-औरठीकबीचमें एकगुंबज-इसकदर कारीगीरीसेवनाहैकि-जिसकों-देखकर अकल हेरानहोजातीहै, बावनजिनालयोंके सामने-खंमोमें-छतोंमे-औरदिवारोंमें जोजो नकशकारीका कामकियाहै जिसकीतारीफ-जबानसे बाहरहै, जोशख्श देखेगा वहीजानसकेगा. सबजिनालयोंमे राजासंपतिकी तामीरकराइहुइ मूर्तिये जायेनशीनहै, विमलशाहशेठकीकहातक तारीफकरे जिनोने अपनी दौलत इसकदर धर्ममें सर्फ किइ.
इसमें मूलनायक-तीर्थकर रिषभदेव-भगवानकी मूर्ति चारहाथ बडी जोकि-राजासंप्रतिकी तामीरकिइहुइ वेसेही-निशानातहै जो राजासंपतिकी बनाइहुइ मूर्तियोंपर होतेहै, संवत् [१०८८] में इसकी प्रतिष्टाकिइगइ-शिलालेखोसे साबीतहै, इस मूर्त्तिके दाहनेऔर बायेपासे दोमूर्ति खडेआकार और है ऊनकेनीचे लिखाहै संवत् (१३८८ ) मे बनाइगइ. गभारेसे बहारजो मूर्ति सर्वधातमय पदमासनहै दाहने पासेकी मूर्तिकनीचे लिखाहै संवत् (१५२०) मे यह तामीरकिइगइ, इनमुर्तियोंकेआगे रंगमंडप तर्फबढोतो जोदो मुर्ति खडेआकार साढेतीनहाथ बडीहैउनके नीचे
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