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________________ तवारिख-लंका. (३३७ ) आये और तलाशकिइ-तो-सीताजीको-नही पाया, बहुत उदासहुवे और तलाश करते करते किष्कंधानगरी पहुचे, वहां सुग्रीवसे मुलाकातहुइ, और दरयाफ्त करनेसे मालूमहुवा कि-सीताजीकों-रावन-लंकामें लेगयाहै, रामचंद्रजी-लछमनजी-बडी तयारीके शाथ लंका पहुचे, उनके शाथ-वरविराध-सुग्रीव-हनुमान-भामंडल-अंगदनलनील वगेरा वडेवहादूर और जमामर्द योद्धथे, इधर विभीषणजोकि-रावनका छोटाभाइथा सीताजीके बारेमे रावनकी बेंइन्साफीसे रुठकर रामचंद्रजीकेशाथ आमिला, रावन अपनीवडी फौज हमरा लेकर जिसमें-कुंभकर्ण-इंद्रजित-हस्त-प्रहस्त-वगेरा बडेबडे बहादूर यो मौजुदथे-रामचंद्रजीके सामने आया, और बडाभारीजंग शुरु हुवा बडेवडे योद्धे अपनी जानपर खेलगये मगर पीछाकदम नहीं किया, एक रौज क्या-महिनोतक जंगहोतारहा, मगर शर्त यहथी कि-वाद-आफताब-गुरुव होनेके लडाइ मौकुफ होजाय और शुभह होनेपर फिर शुरुहो, एकरौज असाभी मौका आयाथाकि-रावनकी अमोघ शक्तिकी जरबसे लछमनजी बेहोश होकर गिरपडेथे, मगर दुसरेरौज फिर होशियार होकर संग्राममें आयेथे, और घोरसंग्राम कियाथा, कहांतक उसका जिक्र बयानकरे जितना लिखो थोडाहै, आखीरकार रामचंद्रजीकी फतेहहुइ और रावनने सिकस्त खाइ, रामचंद्रजी और लछमनजी बडे जुलुसकेशाथ लंकामें गये और अपनी सीताजीकों वापिसलिइ, लंकाका राज्य विभीषणकों दिया, रामचंद्रजी और लछमनजी जैसे बहादूर और जमामर्द शख्श बहुत कम निकलेगे. उसजमानेमे किसी दुसरेकी ताकात नहीथीकिरावनपर-फतेहपावे. लंकामें उसवख्त जैनधर्मका बहुत प्रचार था, और तीर्थकर शांतिनाथ महाराजका बुलंदशिखरबंद आलिशानमंदिरभी बनाहुवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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