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________________ ( ३३६ ) तवारिख-लंका. तख्तपर उस विद्याधर वंशका रत्नाश्रव नामका राजाहुवा, जिसकी रानीका नाम-केकसी-था, उसके शिकमसे-रावन-नामका लडका पैदाहुवा एकरोजकी वातहै नवहीरोंका-हार-जोकि-रावनके बडेरोको देवताकी तर्फसे मिलाथा रावनने अपने गलेमें पहना, तव उस हारके हीरोंकी रौशनीसें रावनके दस मुख नजर आनेलगे, असलमें मुखतो एकहीथा मगर हीरोंकी परछाइसे दशमुख दिखलाइ देतेथे, इसी सबबसे रावनका नाम दसमुख कहलाया, जवजव-वह-हारपहनाकरताथा उसके दसमुख दिखलाइ दियाकरतेथे-और-जबनही-पहनताथा एकही-मुह-नजर आताथा, जब-राजा रत्नाश्रवने वफात पाइ रावन लंकाके तख्तपर वेठा, और उसकी सलतनत वढतीगइ, बडेबडे राजे महाराजे उसके फरमा बरदार हुवे, लंका-निहायत खूबसुरत और झलाझल रौशनी लियेथी बडबडे आलीशान मकानात उद्यान-बनखंड-और-बाग बगीचे यहांथे, मकान मकानपर सोनेके कलस-और-धजा पताका लगीरहतीथी, सुनहरी चित्रकारी और नक्शका काम निहायत उमदा बनाहुवाथा, बडेबडे बाजार और बेशुमार दौलतबी, विद्याधर वंश की आबादी होनेसे उसवख्तके लोग विद्या बलसे आस्मानमें सफर करतेथे, रामचंद्रजी और लछमनजीका रावन के शाथ यहां बहुत भारी जंग हुवाथा, वजह उसकी यहहैकि-जब-रामचंद्रजी-ल छमनजीऔर-सीताजी-अयोध्यासे वनवासके लिये रवाना होकर दंडकारन्यमें आयेथे रावनने सीताजीके रुपकी तारीफ मुनी, और उसके लेनेके लिये आमादा होकर लंकासे आस्मानके रास्ते दंडकारन्यमें आया, और जब रामचंद्रजीकी गेरहाजरीका मौका पाया सीताजी. को उठाकर लेगया रामचंद्रजी और लछमनजी जब अपने डहरेपर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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