SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तवारिख-तीर्थ-चंपापुरी. ( २६९ ) चाहे-तो-करसकतेहै, मंदिरका हाता अलगहै और बहारका हाता अलगहै, यहांपर कोइचीज खानपानकी नही मिलसकती. जोकुछ अपनेशाथ लायेहोगे वही कामदेगी. जियारत करके वापिसउसी रास्ते पहाडसे उतरकर क्षत्रीयकुंड गांव आना, पहाडपर रातकेवख्त ठहरनेकी जगह नहीहै, शुभहके गयेहुवे यात्री शामकों-बखूबी-आसकते है, क्षत्रीयकुंड गांवकी जियारत करके वापिस लखीसराय जंकशन आना, और रैलमें सवार होकर-कवील-कजरा... धरहरा-जमालपुर-बरीयारपुर-सुलतानगंज -अखवरनगर-औरनाथनगर होते भागलपुर-टेशन उरतना, और तीर्थ चंपापुरीकी जियारतकों जाना, [ तारिख-तीर्थ-चंपापुरी. ] तीर्थकर वासुपूज्य स्वामीकी जन्मभूमि चंपापुरी पुराना जैनतीर्थहै. वमुपूज्य-राजाकेघर-जयारानीकी कुखसे फाल्गुन वदी (१४ ) शतभिषा नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, दीक्षाके पेस्तर उनोने यहांपर बहुत खेरात किइ, और फाल्गुनसुदी (१५) के-रोज दुनयवी औश आराम छोडकर यहां दीक्षा इख्तियार किइ माघमुदी ( २ ) के-रोज उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, उनकी खिदमतमें इंद्रदेवते वगेरा आतेथे. श्रीपालजी-जिनोने-नवपदका आराधन कियाथा-इसीचंपापुरीके-राजाथे, तीर्थंकर महावीर स्वामीने यहां तानचौमासे किये, कामदेव श्रावक-जिसकावयान-मूत्रउपाशक दशांगमें दर्ज है इसीचंपाका रहनेवालाथा, कुमारनंदी नामका एक-स्वर्णकार-जिसका बयान-मूत्र आवश्यकमे मौजूदहै इसीचं. पाका नामी ग्रामी शख्शथा, जैनाचार्य-शय्यंभव मूरिने दशवै कालिकमूत्र इसीचंपामें बनाया, सुभद्रासती इसीचंपाकी रहेनेवालीथी बडेबडे खुशनसीव लोग इसचंपामें पैदाहुदै, कहांतक बयान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy