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( २७० ) तवारिख-तीर्थ-चंपापुरी. लिखे, चंपापुरी जानेवाले यात्री भागलपुर टेशन उतरकर खुश्की रास्ते जाय, जो-करीब-तीनमीलके फासलेपर वाकेहै,
जिलेका सदरमुकाम-भागलपुर एक गुलजारशहरहै, मुजागंज-नाथनगर-चंपानगर-और-ममूरगंज वगेरा कइहिस्से होकर भागलपुर बसाहै. सन ( १८९१ ) की-मर्दुमशुमारीके वख्न भागलपुरकी मर्दुमशुमारी ( ६९१०६) मनुष्योंकीथी, भागलपुर एक-तिजारकी-जगहहै, रेशमका कारोबार यहां अछाहोताहै, दरी-और-कंबलभी उमदा बनते है, बाजार अछा और हरकिसमकी चीजे यहां मिलसकती है, जैनश्वेतांबर श्रावकोका एकघर सिर्फ ! नाथनगरमे है, भागलपुर टेशनके सामने जैनश्वेतांबर धर्मशाला-रायबहादर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादकी तामीर करवाइहुइ मौजूद है, यात्री उसमें जाकर कयामकर, धर्मशाला वडीआलीशान जिसमें आठकोठरी-चार दालान-अलग अलग बनेहुवे है, दरवजेके सीरेपर एक-कमरा-और-खुलीछत बनीहुई है, जिसपर गर्मी के दिनोमे बडाआराम मिलताहै, एक-बगीचाऔर मीठे जलका कुवाभी इसीधर्मशालामें मौजूद है, बगीचमेंआम-अमरुद-केले-नींबु-जामन-एरंडककडी--नारियल--कठेरगुलाब-चमेली--मोतिया-केवडा-जुही-गुलदाउदी-गयचंपा-हारशिंगार-कनेर वगेराके पेंड खडे है और इनके फुल, हमेशाकी पुजनमें चढाये जातेहै, एक जैनश्वेतांवर मंदिर वडीलागतका और बुलंद शिखरबंद बनाइवाहै, और उसमें तीर्थकर वामपूज्य स्वामीकी मूर्ति तख्तनशीनहै, दाहनी तर्फके कोनेमें-तीर्थकर वासुपुज्य स्वामीके गणधरकी मूर्ति-बायी तर्फके कोनेमें तीर्थकर मल्लिनाथ और नमिनाथकी मूर्ति-और-उनके कदम जाये ननिहै, और उसपर लिखाहै-संवद् बाणार्षिनागेंद्रौ-राधशभादशी
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