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________________ ( ४२२ ) गुलदस्ते-जराफत. नपर गिर पडा, जब चारों पंडित इकठे हुवे सबने अपना अपना माजरा कहसुनाया, उसवख्त एक मुसाफिरभी वहां-आया हुवाथा इसमाजरेको सुना, और कहनेलगा लानतहै तुमारे इल्म पढनेपर तुम पुरेकम अकल हो, कयौकि-एकने बेंलोकों गमाया, दुसरेने खीचडीमें धूल डाली, तीसरेने शागभाजीके लिये नीमका पत्ता लाया, और चौथेने-घी-ऊंधा करदिया, क्या ! इल्म पढे हुवे पंडितोंका यही तरीका होता है. ? तुमसेतो हमही बहेत्तर जो हरेककामकों सौचकर किया करते है, मुनासिब है अब आगे मतबढो, और अपने बतनको वापिस हो जाओ, अगर आगे बढोगेतो क्या क्या करदिखाओगे, ऐसा कहकर मुसाफिरने अपना रास्ता लिया, और पंडितभी अपने वतनकों बिनावेंलकी गाडी खीचते हुवे वापिस चले आये, इसकिस्सेका मतलब यह हैकि-इल्म पठकर तजरुबा हासिल करना चाहिये, ___ ७०-[ उंटके कानपर मछरकी अवाज. ] एक-मछर-ऊंठकेकानपर बेठकर जोरसे अवाज करनेलगा, इसइरादेसेकि-मेरी-अवाजसे ऊंठ डरे, इधर ऊंठने इसअवाजको मुनकर मछरसे कहा, तुं ! तेरीअवाज किसको सुनारहाहै, ? मछरने कहा तेरेको डरानेकेलिये, ऊंठनेकहा, मेरीपीठपर बडेबडे नकारे और डंके वजचुके इसपख्तभी-में-न-डरातो तेरीछोटीसी अवाजसे क्याडरुंगा, ? जा ! अपनारास्ता ले mitra - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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