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दिवाचा. पासरखें-ताकि-बख्तन फवख्तनागाही होतीरहेगी, औरइसबातकी मालुमीयतहोसकेगीकि-फलां जैनतीर्थइसजगहपरहै,और इसकारास्तायु-है, पुरानेजैनतीर्थोका हाल सुनोतो जिसजिसतीर्थमें मंदिरमुर्तिपर कोइदेवता निगाहबान बनारहताहै, वह बहुत अर्सतक बनीरहती है,
और जिसमंदिरमुर्तिपर देवता निगाहबान नहीरहता वह थोडेअर्सेतक रहकर बरबाद होजाती है, जैनमजहबमें १-शत्रुजय, २-अष्टापद, ३-समेतशिखर, ४-गिरनार, और-५-आबु-ये-पांच बडेजैनतीर्थ मानेगये है, जिसमें तीर्थशत्रुजय निहायतपुराना और मुत्तवरिकहै, तीर्थकर रिषभदेवमहाराज यहांकइदफे तशरीफ लायेथे,जमानेतीर्थकर रिषभदेवके राजाभरतचक्रवर्तीने पहाडअष्टापदपर बडेआलिशानजैनमं. दिर तामीरकरवायेथे, जब तीर्थकर रिषभदेव महाराजने वहांपर मुक्तिपाइ, वहजैनतीर्थ कहलाया, करीब अढाइ हजारवर्स पेस्तर तीर्थकर महावीरके बडेचेले गौतमगणधर इसतीर्थकी जियारतको गयेथे सूत्रआवश्यक अवल अध्ययनकी टीकामें इसका बयान दर्जहै, .. जमाने सगरचक्रवर्तीके तीर्थअष्टापदकी इर्दगिर्द खाइ बनादिइगइ और समुंदरका पानी उसमें शरीककरदियागया जिससे आजकल वहां कोइ-जा-नहीसकता, गौतमगणधर जो गयेथे अपनी तपोलन्धि से गयेथे, तीर्थअष्टापद-भारत मध्यखंडकी उत्तर और वैताढय पर्वतकी दखनमें है जैसा जानना, पहाड हिमालयकों किसीसुरत अष्टापदनहीकहसकते, पहाड समेतशिखरपर तीर्थकर अजितनाथ महाराजने मुक्तिपाइ वह जैनतीर्थ कहलाया इसीतरह चौइसतीर्थकरोके कल्याणिक जहांजहां हुवे-वे-सब जैनतीर्थ कहलातेगये, तीर्थउसका नामहै जहांजाकर जीव संसारसमुद्रसे तीरे मगरशर्त यहहैकि-दिलकी सफाइ होनाचाहिये-तीर्थ तीनतरहसे मानेगयेहै, १-तीर्थंकरोकी
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