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________________ ( ४१२ ) गुलदस्ते - जराफत. तर है इनके लिये जानेकी कोइ तदबीर निकाले, गरजकि- पुरोहि तजीने अपनी औरतसें पुछा कि इनके रवानगीकी क्या सुरत है, ? उसने कहा आप फिक्र मत किजिये, में-कलही इनकी तजवीज करती हूं, ऐसा कहकर दुसरे रौज गेहुकी रोटी बनाना मौकुफ कर दिइ और बाजरे की रोटीयां बनाकर चारों दामाद के सामने रखी, चारोन उन रोटियोंको खाइ, और दुफेरकों जब शतरंज खेलने बैठे विजयरामने कहा, देखो ! आज बाजरे की रोटी मिलने लगी, अब अपनी इज्जत नही जो यहां फिर चंदरौज ठहरे, मुनासिब है, अब अपने घरकों जाय, इस बातकों सुनकर तीनोने कहा, आप जाना हो जाइये, हमतो यहांही ठहरेगें, गरज कि - विजयराम अपने सुसराल से रुकसत पाकर अपने घरकों गया, बाद चंद रौज पुरोहितजीने फिर अपनी औरतसे कहा- ये तीनोतो हिलतेभी नही, इनके जानेकी कोइ तदबीर बनाओ, औ रतने दुसरे रौज घीकी एवज बाजरेकी रोटीयोंपर तिल्लीका तेल दामोदोके सामने रखा, इस बात से माधवराम समझ गया, और दोनो साथियोसे कहने लगा, अबतो पुरी बेइज्जती होने लगी है, बेहत्तर है जल्दी से चल निकले, दोनोने कहा, आप जाइये, हम बाजरे की रोटी और तेलही खाया करेगें, मगर यहांसें नही जायेंगें, यह सुनकर माधवराव मय अपने कबीले के बतन चला गया, बाद चंदरौजके पुरोहितजीने फिर अपनी ओरतसे कहाकि ये दोनों तो खूब जमे बेठे है, इनका भी कोई रास्ता निकालो, दुसरे रौज औरतने चार पाइयां विखेर डाली, और दामादोसें कहने लगी, चार पाइयोंमें खटमल हो गये है, आजसे आपलोग जमीनपर सोया किजिये, इस बातकों सुनकर मणिरामकों होश आया, और कहने लगा, भाइ ! अबतो यहांका रहना ठीक नहीं, ऐसा कहकर मणि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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