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(१६२ ) तवारिख-तीर्थ-केशरीया. ( ३०००) आदमी ब-खूबी कयाम करसकतेहै, खानपानकी चीजे-आटा दाल-धी-सकर मेवा-मिठाइ-जोचाहो मिलसकती है, जैनश्वेतांबरश्रावकोके घर-यहां पांचसात-और-कुल्लव्यापारीयोंकी दुकाने (१०० ) के-करीबहोगी, यात्री किसीधर्मशालामें जाकर कयामकरे, कोइमना नहीकर सकता,-करीब एकहजार वर्षहुवे मूर्ति-केशरीयाजीकी-धुलेवा-गांवसे बहारकी जमीनसें निकलीथी,-मूर्ति-ततकाल परचा देनेवाली होनेसें-यात्री-बहुतआने लगे और दिन-ब-दिन पूजामें तरक्की होनेलगी. बाद चंदरोजके जब खजाना तरहुवा-मंदिर बननेका काम शुरूहुवा, और जबबन कर तयार होगया-बडीशान-च-सोतकसे प्रतिष्टाकिइगइ, वहीमंदिर अबतककायमहै, उदयपुरकी तबारिखसे मालूमहोताहै. महाराणा मोकलजीकेवख्तमें यहमंदिर बना, बडासंगीन-बेशकीमती-बावन जिनालयका मंदिर देखकर दिलखुशहोगा, रंगमंडपकी दाहनीतर्फ दिवारमें एकशिलालेखलगा हुवाहै उसमे लिखाहै संवत् (१४३१) वैशाखसुदी (३) बुधवारकेरौज फलां सख्शने इसतीर्थकी जियारतकिइ, बायीतर्फकी दिवारपर जोदूसराशिलालेख लगाहै उसमें संवत् (१५७२) वैशाख सुदी (५) सोमवारके रौज फलांशख्शने इसतीर्थकी जियारतकिइ, इनलेखोंसे सबुतहुवा-संवत् चौदहसोके पेस्तरका यहमंदिरवना हुवाहै,-शिवायइसके दूसरे कोइशिलालेख नहीपायेजाते,
बहारकेरंगमंडपमें जोबायीतर्फकी दिवारपर एकशिलालेख मौजूदहै संवत् उसका दबगयाहै-नीचेकीतर्फ जिनभक्तिमरि-औरजिनलाभरिवगेरा जैनाचार्योंकेनामहै. मंदिरका रंगमंडप-औरलिंगारचौकी उमदा कारीगीरीसे बनाइगइहै, अतराफमंदिरके कोट खीचाहुघा-और-फूलनायक तीर्थकररिषभदेवमहाराजकी शामरंग
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