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तवारिख-तीर्थ-केशरीया. (१६३ ) मूर्ति-करीब अढाइहाथवडी तख्तनशीन है, मूर्तिपर कोइलेखनहीशिंगार-गेहने-आभूषन-अंगीवगेरा काम-मुताबिक जैनश्वेतांवर आम्नायक होताहै, इसमूर्तिपर जाफरान बहुतचढती है और जाफरानकों संस्कृतजबानमें केशरवोलते है-इसीवजहसे इसमूर्तिका नाम केशरीयाजी कहागया. मंदिरकेरंगमंडपमें-नवचौकीकी छतमें सभामंडपमें-और-परकम्मामें-जोजोकाम पथरोपरहुवाहै सबउमदा कारीगीरीके शाथहै, ____ मंदिरकीवहार नकारखानेकेनीचे थंभेकी बरावरीमें जोवडा शिलालेखहै महाराणा संग्रामसिंहजीकेवख्तकाहै, इसकेपास छोटे पथरपर संवत् (१८४९) जो-गांव-बिलखकेलोगोका इकरारनामाहै उसमेलिखाहै, हमलोग मंदिरकीचौकी बखूबीकरेगें, एकलेख संवत् (१९३७) काहै उसमें भीललोगोंका इकरारनामाहै,-एक लेख अरिसिंहजीकाहै, इसमें संवत्कीजगह टुटीहुइहै.-मंदिरकेदरवजेकी बहार अवलचौकीकी छतमें (८१) कोठेका-यंत्र-पथरमें ऊकेराहुवाबडाप्रभाविकहै,-मंदिरकेपास केशरीयाजीतीर्थका कारखाना बनाहुवाहै-मुनीम-गुमास्ते-नोकर-चाकर-चपरासी-औरनकारखाना हमेशांकेलिये जारी है, परकम्माके जिनालयोमें-कह जिनमूर्तिये संवत् (१७३६) की है, कइसंवत् (१७५४) कीकइसंवत् (१७७८) और कइसंवत् (१७९०) की-प्रतिष्टित जायेनशीनहै. मूलनायकजीके सामने एकहाथी पथरका बनाइवाऔर-उसफर-मरुदेवजीकी मूर्ति-जायेनशीनहै, मंदिरकी सीढीकी दोनोंतर्फ-शासनदेवी-चक्रेश्वरी-और-पदमावती शंगेमर्मरपथरपर उमदाबनीहुइ-निचली डयोढीकेपास-दोहाथी-आमनेसामने-शामरंग पथरके बनेहुवे-और-बडेदरवजेके बहार नकारखानेकेनिचे फिर-दोहाथी-उतनेहीबडे निहायखूरत पथरकेबनेहुवे बतौरवबाश्के खडे है,
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