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(४२० ) गुलदस्ते-जराफत. कहा, क्या ! इतनाभी तुजे खयालनहीकि-कुछ अंदाजसें भी बात कहीजाती है, बीमारके घर-या-इर्दगिर्द किसीचीजका छिलका-या टुकडा पडाहो-तो-जानना यहचीज वीमारनेभी खाइहोगी, लडकेने कहा अछा ! कल-में-नाडीदेखनेजाऊंगा, और जैसा आपकहते है मेंभी-कहुंगा, गरजकि-दुसरेरौज बीमारकेघर नाडीदेखनेकेलिये लडका गया, बीमारके घरकेपास एक-चूहा-मराहुवापडाथा, भीतरजाकर नाडीदेखी और कहनेलमाकि-आपने आज चूहेका गोस्त खायाहै, बीमार सुनकर हसा, और कहनेलगा अछी हकीमीपढेहो, क्या ! आदमीभी कहीं चूहा खाताहै, आप तशरीफ लेजाइये और अपने वालिदकों भेजिये, लडका घरआया और सब केफियत वालिदको कहसुनाइ, वालिदने कहा, अवे ! नामाकुल ! ! तुजे इतनाभी मालूमनहीकि-कोइवातकहना तो सोचसमझकर कहना, तेने बीमारके घरपर मराचूहा देखातो क्या! आदमीभी कहीं चूहा खाते है, हकीमसाहब फिर बीमारके घरगये, और कहनेलगे लडका अभी-इल्महै, इसीसे ऐसाआपकों कहगया, लाइये ! में-नाडीदेखताहुं, ऐसाकहकर नाडीदेखी और कहनेलगे, आजआपकी नाडी दुरुस्तहै, थोडेरौजमें आप अछेहोजाओगे,
६९-[चार पंडितोंका-लतिका, ] किसी शहरमें चारपंडित रहतेथे, एक हकीम-दुसरा नजुमीतीसरा व्याकरण पाठी-और-चोथा-तर्कवादी-ये-चारों आलादर्जेके पंडितथे, मगर तजरुबाकार विल्कुल नहीथे, इत्तिफाकन ! ये चारों कहींदुसरे शहरजानेपर आमादा हुवे, किसीसे गाडी अमानतमांगली, और किसीसे दो-बलभी-मांगलाये, गाडी बांधबंधाकर तीनों उसपर बेठगये, और एक हांकनेवाला बना, गरज शुभहके चले हुवे बारां बजेतक मंजिल तयकिइ और एक जंगलमें छायादार
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