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________________ गुलदस्ते-जराफत (४०५) नक्षत्र देखकर उठा ले जायगें, ऐसा कहकर उसपर मीटी दाब दिइ, और घर चले आये, दुसरे रोज चालाक दोस्तने खुद अकेले जाकर सब सोनामहोरे अपने हाथ कर लिइ, और उस बर्तनमें कोयले भर दिये, बाद दोचार रौजके अछा नक्षत्र देखकर दोनों वहां गये, और मीटी निकालकर उसबर्तनकों देखते है-तो-महोरोकी एवजमें कोयलोसे भरा हुवा है, चालाक दोस्त कहने लगा, क्या करे! भाइ !! अपनी तकदीरही बुरी है, जो सोनामहोरे कोयले हो गइ, पस! दोनों नाउमीद होकर वापिस चले आये, मगर नई दगाकी हर्गिज ! छीपती नही, आखीरकार चालाक दोस्तकी चालाकी मालूम हो गइ, और दुसरे दोस्तने सोचाकि-अब आपनभी चालाकी करना चाहिये, गरज! वह चालाक दोस्तके घर गया और कहने लगा आज आपके लडकेकों मेरे घर खाना खिलानेकों ले जाता हूं, ऐसा कहकर उसके लडकेकों अपने घर ले गया, और खाना खिलाकर तलघरमें उसको छीपा रखा, और एक-बंदर-मौल लाकर घरमें बांध दिया, दुसरे रोज चालाक दोस्त उसके घर आया और पुछाकि-भैया ! लडका कहां है ? जो कल तुमारे घर दावतके लिये आयाथा, दोस्तने जवाब दिया, क्या कहुं ! अपशोषकी बात है, आपका लडका बाद खाना खा चुकनेके बंदर बन गया, देख लो ! यह बंधा हुवा मौजूद है, चा. लाक दोस्त हेरान हुवा और कहने लगा क्या ! लडकाभी बंदर बन जाता है ? दोस्तने कहा, कभी सोनामहोरेभी कोयले हो जाती है, ? तब चालाक दोस्त समझ गया, और कहने लगा, सोनामहोरे मौजूद है, क्यों फिकर करते हो ? उसने कहा लडकाभी मौजूद है, तुम क्यों फिक्र करते हो? गरजकि-उसने-सोनामहोरे दे दिइ और इसने लडका दे दिया, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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