SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ ( ४०४ ) गुलदस्ते - जराफत. वह खुद पाता है, - दुनिया अनादि है, जमीन -आब- हवा - आ तीश - और - वनास्पतिमेंभी जीवोंका होना जैन मानते है, मुक्तिके लिये ज्ञान - और - क्रिया अपनी अपनी जगहपर काबिल मंजुर कर नेके है, शराब - गोस्त - सहेत - और - जमीकंद खाना जैनमें मना है, पानीकों कपडेसें छानकर पीना चाहिये. रातको खाना जैनमें क ताइ मना है, शिकार खेलना - या - जीवोंका काटना - मारना जैन लोग अच्छा नही समझते, बल्कि ! लुले - लंगडे जानवर जो करीब मोत होते है हिफाजतसें रखते है, हिंदमें कई जगह इनके लिए मकानातभी बने हुवे है, जैनोमे (१६) संस्कार और उनके मंत्र अलग अलग मौजूद है, ख्वाह मर्द - या - औरत कोईहो इल्म पढना सबके लिये जाइज है, जो जो दुनियादार जैन मजहबपर एतकात रखते है अपनी पैदाशमेंसे रुपये आठ आने-चार आने- या - दोआने धर्ममें खर्च करे, और हरसाल एक जैन तीर्थकी जियारतकों जाय, दुनियामें धर्म एक आलादर्जेकी चीज है, - ४८ - [ दोस्तकें साथ दोस्तकी चालाकी . ] किसी शहरमे दो - दोस्त रहते थे, एक रौज - वे - जंगलकी तर्फ सैर करनेके लिये गये, और कुछ दूर जाकर एक दरख्त के नीचे वेठे, इधर उधर देखते है तो इत्तिफाकन ! जमीनमे गडा हुवा एक बड़े बर्तनका मुंह दिखाई दिया, नजदीक जाकर देखते है तो वहवर्तन मीटी मे दवा हुवा है, मीटीकों हटाकर उसका ढकन खोला तो भीतर सोनामहोर लबालब भरी हुई नजर आई, दोनों आपसमें खुश हुवे और कहने लगे क्याही ! अछी बात है ! आज खजाना मिल गया, मगर दोनोंमें एक चालाक था, कहने लगा भाई! आज इसकों यही रख छोडे, क्योंकि दिन- अछा नही है, अछा 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat • www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy