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________________ सवाने-उमरी. ( ८७ ) प्रश्नपांचको खंडनकरके मजहब रिसाला बनायाहै, तीनथुइका परामर्श एक-तीनथुइपें रचायाहै, विधि जैनसंस्कार बनाकर तनपरयश उपजायाहै, गृहस्थापनमें नाम हठीसिंह-जन्मलग्नमें विदितविचार, संयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधन घरवार, विद्या, ३, उन्नीसवर्षकी उमरआपकी-जबसे यह संयम धार्यो, धन्यमुनिजी आपने कामक्रोध रिपुकों मार्यो, सकल कामना तजी जग्तकी-लोभपाप पावकनार्यो, धन्यहो स्वामीआपने निजआतम कारजसाया, विद्यासागर न्यायरत्नमुनि-धर्मधुरंधर पदधार्यो, देशदेश और नगरगांवमें मुजश आपने विस्तार्यो, सुरजमल्लकी हाथजोडकर-मुनिजीवंदना वारंवार, सयमलीनो आपने छोडयो कुटुंब सबधन घरवार, विद्या, ४ ( इति गुरुभक्तिपर लावनी.) Gram [ लावनी-अष्टपदी.-] [ जगतमें नवपदजयकारी-सेवतां पापटले भारी, ] (इसचालपर-) मुनिश्री शांतिविजयजी आप-कर्मके मेटदिये संताप, मुखसंसारसे मुखमोडयो-कुटुंबसें सब नातो तोडयो, ध्यान निज जिनप्रभुसे जोडयो-लोभ और मोहकाम छोडयो, (दोहा.) पंचमहाव्रतधारके-करतेहो उपकार, छकायाके जीववचाते-मुनिजी वारंवार, भुलकर नहीकरते संताप-कर्मके मेटदिये सब पाप, मुनिश्री, १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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