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________________ ( ८८ ) सवाने - उमरी. कामना छोडी सारीको - तरसना मारी भारीको, - धन्य ऐसे आचारीको - नमन है दृढव्रतधारीको, (दोहा) पुदगल परिचय छोडियो - भव्यजीवनके काज, विचरतो सबजरतमें स्वामी - धर्मध्यानके जहाज, अनुकंपा रही दिलमें व्याप-कर्मके मेटदिये संताप, मुनिश्री, २ दोष कर्मनको टार्यो - गरव तनमनसे सब गार्यो, धर्म जिनवरों विसतार्यो - अन्यमत चितमें नही धार्यो, (दोहा) मिथ्यामतकों खंडन किनो - जिनमतमंडन कीन, श्रीजिनके चरनसर में रहते है लयलीन, दुष्टजन गये आपसे कांप-कर्मके मेटदिये संताप, मुनिश्री, ३ इंद्रियां पांचोकों मारी- आपने तजे कनक नारी, धर्म ग्रंथ रचे भारी - वचन सब माने संसारी, (दोहा) कहांतलक बर्ननकरुं मुनिजी परमदयाल, सुरजमल्लकी हाथजोडकर - वंदना ल्यो प्रतिपाल, प्रभुका नित उठकरते जाप - कर्मके मेटदिये संताप, मुनिश्री, ४ ( इति - अष्टपदी लावनी समाप्त. ) - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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