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( १ )
गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद
( गहूली पहली )
( जगतगुरु जिनवर जयकारी,) इस चालपर,
श्रोतारे सुनो गुरुगुणना रागी-जानोरे तुम भाग्यदशा जागी, श्रोतारे सुनो गुणना रागी, जंबुमाहि भरतभलूं मुनिये-देशगुर्जर राजनगर गणिये, शोभारे तेह शहरतणी मुनिये-श्रोतारे, शोभे जिनमंदिर जयकारी-के-शत उपर अठ निरधारी, नमेरे जहां नितनित नरनारी-श्रोतारे, करमदल कापवा बलवंता-साधु जिनशासनमें रमता, एतोरे पांचो इंद्रियने दमता-श्रोतारे, आव्या गुरु देशविदेश फिरी-भूमी राजनगरनी पवित्रकरी, श्रोतारे मन शंसय दूर हरी-श्रोतारे, संवत् ओगणीस चालीस विषे-गुरु गिरुवा एकविस शिष्ये, रही राजनगरमें कर्म पीसे-श्रोतारे, तृष्णा तरुणीथी मन तांणी-विरतिरमणी करी पटराणी, जेह उभयलोकमां गुणखाणी-श्रोतारे, विवेकने मंत्रीपद ताजा-संवेगकुवर किया युवराजा, संवर रहे हाजर दरवाजा-श्रोतारे, आर्जवपटहस्ती महाभारी-विनयरूप घोडा सिणधारी, मुनि आतमराज करे भारी-श्रोतारे, रथ संयमशिलतणा भरिया-मुभट शमदमथी अलंकरीया, मुनि समतारसना दरिया-श्रोतारे, के समकितमहेल मनोहारी-संतोषसिंहासन गुणकारी,
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