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________________ ( २ ) गुरुभक्तिपर-गहूली-पद-और-छंद. बेठारे जहां मुनिमुद्रा धारी-श्रोतारे, चामर जहा धर्मशुकल करता-किरतिजशछत्र जहां फिरता, कर्यारे जेणे मोहरिपु डरता-श्रोतारे, अलिकद्रव्यराज कर्यु अलगुं-भलुरे भावराजमां मन वलगुं, दुरितवन शिध्र जेथी सलगुं, आतमरुप लक्ष्मी रुडी लेवा-सदा करे शांतिविजय सेवा, मीळेरे जेथी मुक्तितणा मेवा, ( गहूली दूसरी, ) (भवी तुमे मुणजोरे-भगवतीसूत्रनी वाणी, ) इस चालपर भवीतुम मुणजोरे-गुरुमुखमधुरी वांणी, दिलमां धरजोरे-समतारसगुणखाणी, पंजाबदेशमां जन्मलिया गुरु-बालपणे व्रत लीधा, व्याकरणालंकार भणीने-दुर्मत दुरे किधा, भवीतुम. १ नामसमानगुणे शोभंता-मुमतिगुप्तिना धारी, आतमनिजपद ध्यानमा लिना-भिना जिनगुणक्यारी, भवीतुम. २ आगम अनुसारी किरियामां-अप्रमत गुरुराया, तृष्णातरुणीथी मन तांणी-संयम तान लगाया, भवीतुम.३ गांमनगरपुर देसविदेसे-विचरंता व्रतधारी, बहुजनने प्रतिबोध दइने-दुरमति दुर निवारी, भवीतुम. ४ शंसयशत्रु दुर निवारी-भयथी निर्भय कीधा, खटमततत्व स्वरुप बतावी-लोचन अमने दीधा, भवीतुम. ५ कुमतवादलां दुर निवारी-कीधो हम सुपसाय, जलहलदिवडा जिनवाणीना-कटाया गुरुराय, भवीतुम. ६ ए उपकार तुमारो कहो गुरु-विसार्यो किम जाय, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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