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( २८८ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. संवत् (१९३३) ज्येष्ठ शुक्लदशम्यां-शनिवासरे-अभिनंदन जिनेंद्रस्य-चरणपादुका जीर्णोद्धारः-श्रीसंघेन-कारितः
वेदीकेनीचे एकतर्फकी दिवारमें एक शिलालेख लगाहुवा है और उसमें लिखाहैकि- इसवेदीकी मरम्मत-संवत् (१९४२) में शाह-शामजी-पदमसी-साकीन-कछ-मांडवी-श्रीमालवंशीने करवाइ, इसटोंकसे नीचे उतरकर शामलिया-पार्श्वनाथजीके मंदिरकों-जाना.
शामलियापार्श्वनाथजीका मंदिर-निहायत कीमती-और-शिखरबंद बनाहुवा इसमंदिरका दुसरा नाम-धुरमटका-मंदिर-भीबोलतेहै, और कोइकोइ जलमंदिरभी कहतेहै, सब मंदिरोंकेवीचमानींदे स्वर्ग विमानके देखलो, जबकि-यहमंदिर-जगतशेठ खुशालचंदजीने तामीरकरवाया जमाने उसवख्तके-रैल-नहीथी. पहाडके नीचेसे उपरतक सब माल-असवाव-इमारतका हाथीयोंपर लदाकर चढायाजाताथा, इसकी तामीरातमें (९३६००० ) रुपये सर्फहुवे, पीछाडी मंदिरके एक शिलालेख लगाहुवाथा, मगर इस वख्त नहीं रहा, इसमें तीर्थकर पार्श्वनाथमहाराजकी मूर्तिकरीब (२) हाथवडी-शामरंग-तख्तनशीन है, और उसकेनीचे लिखाहै संवत् (१८२२) वर्षे-वैशाख शुक्ल (१३) गुरौ-शाह खुशालचंद्रेण-श्रीपार्श्वबिंबं-कारापितं--प्रतिष्टितंच-सर्वसरिभिः-दाहनीतर्फ तीर्थकर संभवनाथमहाराजकी मूर्ति-करीब देढहाथ बडी सफेदरंग जायेनशीनहै, और उसकेनीचेलिखाहै संवत् (१८२२) मे यहमूर्ति प्रतिष्टित किइगइ, और मुगालचंद्र-ओश. वाल-साणसुखागोत्र-साकीन मुर्शिदाबादने तामीर करवाइ, इसके दाहनेपासे एक-और-मूर्ति-तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी फणसहित-करीब (२) हाथवडी सफेदरंग जायेनशीनहै. और उसपर लिखाहै
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