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तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. (२८९ ) संवत् (१८२२) में-मुगालचंद्र-ओशवाल-साणसुखागोत्र-साकीन मुर्शिदाबादने यह तामीर करवाइ.
वायीतर्फ शामलीयापार्श्वनाथजीके एकमूर्ति-तीर्थकर आभि. नंदनस्वामीकी-करीब देढहाथ बडी सफेदरंग जायेनशीनहै. और उसपर लिखाहै-संवत् (१८२२) में मुगालचंद्र-ओशवाल-साणसुखागोत्र-साकीन-मुर्शिदाबादने यह तामीरकरवाइ, इसकी बायी तर्फ-एक-और-मूर्ति-तीर्थकर शीतलनाथमहाराजकी करीब देढ हाथ बडी सफेदरंग जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१८२२) में-सुगालचंद्र-ओशवाल-साणसुखागोत्र-साकीन मुर्शिदाबादने यह तामीरकरवाइ,-श्रावक खुशालचंदजी-और-उपर लिखेहुवे श्रावक-मुगालचंद्रजी-जैनश्वेतांबर श्रावकथे, मंदिरका रंगमंडप और दालान निहायत उमदा बनेहुवे-फर्स-शंगमर्मर पथरका-खुलाचौक-जिसमें (५००) आदमी ब-खूबी वेठसकते है. खुबसुरतिदेखकर दिलखुश होगा,-जगह मानींदे स्वर्गविमानके देखलो, हरीहरीवनास्पति-और-जडीबुटीयें यहांपर खडी है, जिनकों इस बातकी माहिती है खजाना जवाहिरात दिखरहाहै,
धर्मशाला यहांपर (२) बनीहुइ, एक पंचायती, दुसरी-रायबहादुर धनपतसिंहजी-साकीन मुर्शिदाबादकी तामीर किइ हुइ. यात्री अगर रातकों यहांकयाम करना चाहै, शौखसे करे. चौकी पहरेका बंदोबस्त अछाहै. मगर कभीकभी ठंडीरातकों पानीपीनेकेलिये-शेरभी यहां आजाताहै, इसलिये खुलेमेंदानमें सोना ठीकनहि भीतरधर्मशालाकेबंदोबस्तीसे सोनाचाहिये, आजतक किसीयात्रीकों तकलीफ शेरकी नहिहुइ, तीर्थका रवाव बडाहै, मगर तोभी इनसानकों जानका बचाना • फर्जहै, इसलिये बंदोबस्तकेशाथ सोनाचाहिये, पानीके दो-कुंड-और
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