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________________ तवारिख-पावापुरी-और-गुणशिलवनउद्यान. ( २४९ ) तख्तनशीनहै, असलमें यहमूर्ति पुरानी है. और उसपर लिखाहैकि संवत् (४४४) में यह प्रतिष्टितकिइगइ, प्रतिष्टा करानेवाले आचार्यका नाम घीसजानेकी वजहसे पढनेमें नहीआता, इसमूर्त्तिके इर्द गीर्द तीर्थकर रिषभदेव-चंदाप्रभु-मुविधिनाथ-और-तीर्थकर नेमनाथमहाराजकी मूर्तिये जायेनशीनहै, मूलनायकके सामने तीर्थकर महावीरस्वामीके चरन-दाहनीतर्फ पुरानेचरन-बायीतर्फ ग्यारहगणधरोंके चरन-और-देवगिणि क्षमाश्रमण महाराजकी मूर्ति करीव (१) फुटबडी जायेनशीनहै, चारोकोनोंमे चारछत्री-एकमें ती. थंकर महावीरस्वामीके चरन-एकमें स्थूलभद्रजीके चरन-एकमें चंदनबालाके-और-एकमें दादाजीके चरन-मौजूदहै, रंगमंडप मंदिरका निहायत पुख्ता-और-निचे फर्स शंगमर्मरपथरका साफवना हुवाहै, मंदिरका शिखरवहुत बुलंदहै, और उसपर बावनकलसीयां लगीहुइ-निहायत खूबमूरति देरही है, मंदिरके बहार बगीचा एक बहुत-तर-ब-ताजा-वनाहुवा इसमें गुलाब-चमेली-चंपा-केतकी-बेला-मोघरा-गुलदाउदी-डमरा-मरुआ--जुही-कुंद-वगेराकेफुल पैदाहोते है और हमेशांकी पृजनमें चढाये जाते है, धर्मशालाके अंदर ( २१ ) कोठरी और कइदालानहै, सब काम मजबूत और लदावका कियाहुवा-करीब (४००) आदमी इसमें ब-खूबी आराम करसकते है, और दरवजेके फाटकपर नकारखाना जारी है, दुसरी धर्मशाला इसीकी दिवारसे लगीहुइ इसमें वडाभारी कमरा और चारोतर्फ चारदालान बनेहुवे है. चारोतर्फ कोट खीचाहुवा और एकबगीचा इसमेंभी मौजूदहै, दोंनो धर्मशाला-और-मंदिर करीव (५) विधेकेघेरेमें बनेहुवे-और चारकुवे मीठेजलके यहांपर मौजूदहै, धर्मशाला और मंदिरके सा. मने जो सिधिसडक जाती है वह कमल सरोवरतक पहुची है. जहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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