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सवाने - उमरी.
( ६५ ) कर क्षत्रीयकुंडगांव गये, जो वहांसे -नव कोशके फासलेपर तीर्थकरमहावीरस्वामी की जन्मभूमि है, यहांपर एक- जैन श्वेतांबर मंदिर गांव मे दो- तलहटी में और एक पहाडपर बना हुवा है, वहांजाकर जियातकिड़ और तवारिख वहांकी अपनी नोटबुकमें दर्ज किइ, पहाइसे वापिस आतेवत - शामके चारबजे तलहटीके मंदिरपास (५०) कदमके फासलेपर एकवडा - शैर-जाता हुवा दिखलाइदिया, -मंदि - रके पूजारी - धारीलालने शेरकों देखकर मंदिरका दरवजा बंदकर लिया, जिस- डोलीम - महाराज सवारथे, डोलीवालोने डोली जमीनपर रखदिर, महाराजने पुछा ढोली क्यों रखदिइ ? - वे - खौफ की वजहसें जवाब - न-देसके, महाराजने जब इधरउधर देखा तो करीब (५०) कदमके फासलेपर एक शेर - नजर आया, मगर व दौलत - देवगुरुधर्म - और - प्रभावतीर्थ भूमिके - वो- सामने - नहिआया, और कुदताहुवा डावीतर्फकी एक-टेकरी - लाघता चलागया, पूजारी धारीलाल - जोकि -- डरगयाथा - मंदिरका दरवजा खोला, और कहने लगा शुक्र है, आज ! हमारी जान बची, यहां तो अकसर एसाही माजरा हुवाकरता है, महाराजने वहांकी जियारत कर, और शामके पांचव क्षत्रीयकुंड गांवकों वापिस आये, तीसरेरौज क्षत्रीयकुंड गांव रवानाहोकर लखीसराय टेशनकों आये, और रैलमें सवार होकर शहरपटना पहुचे, वाडेकीगली में जैन श्वेतांबर मंदिरकेपास - मकान में कयामकिया और तीर्थकी जियारत कर, शहरसे दो मील के फासलेपर - कमलद्रहपर जाकर - स्थूलभद्र महाराजके चरणोकी छत्री - और सुदर्शनशेठकी शुलीका - सिंहासन - होगयाथा वह - जगह देखी, शिलालेखोकी नकल और तवारिख पटना-अपनी नोटबुक में दर्जfer पटनेसे खानाहोकर बखतीयारपुर होते सुबेविहारकों पहुचे, मोशमसर्मा वहांपर-गुजारी, चैत महिने में तीर्थ
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