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________________ सवाने-उमरी. ख्यानादिया, विधिवाद उसको कहते है-जो-तीर्थकरगणधरोका हुकमहो, चरितानुवाद उसको कहते है जिसमें कथा--कहानी-चरितवगेरा बयान कियागयाहो, यथास्थितवाद उसका नामहै जैसे द्वीप-समुद्र-नरक-स्वर्ग-गांव-नगर-कोट-किला वगेरा जो चीज जैसी है उसका बयानकियाहो, विधिवाद काविलमंसुर करनेके है, चरितानुवादमे-जोजो-बातें मुताविक विधिवादक है-मंजुर करना चाहिये, और जोजोबातें खिलाफहै छोडदेना चाहिये, यथास्थितवाद-काविल जाननेके है, जोशख्श जैनशास्त्रोके मतलबको पहिचाननाचाहे इनको--व-गौर समझे, पर्युषणपर्वकी अखीरमें चैत्यपरिपाटीका जलसा अछा हुवा, और धर्मकी-तरक्की लाइकतारीफके हुइ, निशिथमत्र--और-यहकल्पसूत्र-इनदिनोमें-बाचे, कइ महाशयोके शाथ-मजहबकेबारेमेंबहेस होतीरही, [संवत १९५८का चौमासा शहर कलकत्ता, पोष महिनेमें मुर्शिदाबादसे रवाना होकर दोबारा समेतशिखरजीकी जियारतकों गये, मुर्शिदाबादके कितनेक श्रावक-श्राविका शाथ-आयेथे, मधुबनमे पोषवदी (१०) मीके रौज रथयात्राका जलसा कियागया, दुसरेरौज पहाडपरजाकर जियारतकिइ, चंदरौज ठहरे और फिर गिरिडी टेशनको वापिसआये, मुर्शिदाबादके श्रावक-श्राविका-अपने वतनकों गये और महाराज-लखीसराय अंकशन आये. और वहां खुश्कीरास्ते करीब (६) कोसके फासलेपर-जो-काकंदी नगरी है जियारतकों गये, तीर्थकरमुविधिनाथकी जन्मभूमि यही काकंदी नगरी है, उसकी जियारतकिइ और वहांकि तबारिख अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ. काकंदीसे रवानाहो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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