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________________ (६६) सवाने-उमरी. पावापुरीकी जियारतकों गये, और करीब देढमहिनेके वहांपर कयामकिया. पावापुरीसे रवानाहोकर भागलपुर होतेहुवे चंपापुरी गये और दुसरीमरतबे जियारतकिइ.-चंपापुरीसे भागलपुरआकर शहर कलकत्तेकों गये. और संवत् (१९५८) की-वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे, और सभा अछी भरतीथी, पhषणपर्वकी अखीरमें चैत्यपरिपाटीका जलसा उमदा हुवा, अखबार भारतमित्र और हिंदीवंगवासी-जो-कलकत्तेके ना मीग्रामी अखबारहै उसमें महाराजकी इसतरह तारीफ छपीथी, (अखबार भारतमित्र कलकत्ता, तारिख २८ सितंबरशनिवार सन १९०१ इस्वी संवत् १९५८ भाद्रपद शुक्ल १५-) श्वेतांबर जैनोके गुरु विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजी चारमहिनेसे कलकत्तेमें है, गतमंगलवारसे पर्दूषणपर्व आरंभहुवा, जाख्यानके समय (६००) जहोरी जमाहोतेथे, जहोरीलोगोने बडीधूमसे जलसाकिया, भाद्रपदसुदी (४) मंगलवारको . सब जैनश्वेतांबर श्रावकोने मिलकर उक्तमहाराजको बडे जुलुससे दर्शन करानेकों लेगये, ऐसा जलसा कभी नहीहुवाथा, जैसा इस सालहुवा, आप बडे पंडितहै, आपके आनेसे यहां जैनोमें वडा धर्मोत्साह फैलाहै, आपकी बनाइ मानवधर्मसंहिता किताव जैनोके पढनेके काबिल है, ( अखबार हिंदीबंगवासी-कलकत्ता, तारिख १८ नवेंबर सन १९०१ इस्वी संवत् १९५८ कातिक सुदी ७ सोमवार,). " कलकत्तेमे गुरु "यहांपर अनेक जहोरी जैनीहै, विद्यासागर-न्यायरत्नमहाराज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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