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________________ ( २९८ ) तवारिख-शहर-कलकत्ता. नावे-घुमरही है, और तरहतरहके झंडे फरकरहेहै, पश्चिमसे जानेवालेको अवल-हवराटेशन मिलताहै, टेशनपर इका-बगी-तयार मिलेगी, वेठकर शहरमेंजाना,-और-शामावाइकी गलीमे-जो जैन श्वेतांबर धर्मशाला वनीङ रहे जाकर ठहरमा, जोकोइ यात्री दादावाडौंमें ठहरनाचाहे-सीधे अलसीवगान पुशे चले जाय वहांभी ठहरनेकेलिये धर्मशाला मौजुदा है, शहर में वहां ज्यादह आराम मि. लेगा, मगर शहरमें आनेजानेकी बेशक ! तकलीफ रहेगी, दादाजीके बगीचमें छत्री-और-कदम-दादाजीके जायेनशीन है, सामने एकतालाब-और-एक-वारांदरी-निहायत उमदा बनी हुइ जहांकि-तीर्थकर धर्मनाथ जीकी सवारी-कार्तिक पुनमके रोज शहरसे आती है और ठहराइजाती है, छत्रीसे पश्चिमको धर्मशाला बाहुइ यात्री इसमें शकर ठहरे, कोइ रोकटोक नहि. कुवा-एक मोठे जलका-और-पासमें एक बगीचा जिसमें-गुलाव-चंपा वगेराके फुल पेदा होने है, लसीके पचिपकों रायवद्रीदासजीका बगीचा-और-उन्हीका तामीर करवायाहुवा तीर्थकर शीतलनाथजी का मंदिर बडीलागतकाहै इसकी हलेवजह और मीनाकारी काम अजबकिसमका देखोगे, इसको देखनकालिये हरवख्त कइलोग आते जातेहै, इसकी तारीफ तमाम कलक में मशहूर है, कइअंग्रेज इसका फोटो उतारकर लेजातहै, इसमंदिरमें कइ किसमके चित्राम-और आइनेका काम-इसकदर उमदा वनाहे जिसको देखकर आदमी ताज्जुब करताहै, मंदिरकी दवनतर्फ-श्रीकल्याणमूरिजीकी छत्रीउत्तरतर्फ धर्मशालाएक-बारादरी--तीनकमरे--चारचमन--जलके फव्वारे-सामने तालाब-और फाटककेउपर नोवतखाना-जिसमें हमेशां-शुभह-शाम-लोबत बजती है, दादाजीके बगीचसे इशानकोनकों जहोरी-मुखलालजीका-तामीरकरवायाहुवा मंदिर बेश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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