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नसीहत-उल-आम.
। [ नसीहत-उल-आम, ] १-नरदेह वारवार नहीमिलता, इसको पाकर जोकुछ बनपडे नेकीकरो हरशुभह चारघडी रातरहते नींद छोडदो, आफताव तुलुहोयेतक सोतेरहना अछानही, जव विस्तरसे उठो पेस्तर अपना सांस देखलो, चंद्रस्वर चलताहै-या-मूर्यस्वर ? अगर चंद्रस्वर चल ताहै तो बायापांव-और-सूर्यस्वर चलताहै तो दाहनापांव जमीन पर रखो, वाद अपनी जरुरी हाजतोसे फारिग होकर तीर्थकरदेवोकी इबादत करो, जवकोई मर्द-या-औरत मंदिरमें देवदर्शनको जाय अपने बदन और लिवासकों साफकरके जाय, यह नहीकि-नापाक बदन और लिवाससे मंदिरमें चलेजाय, शुभहके वख्त जंगलकी हवामें घुमना निहायत मुफीदहै, मगर रास्तेमें कीडेमकोडोकों वचाकर घुमना चाहिये, ताकि उनपरभी कुछ तकलीफ-ल-गुजरे,साफ हवा इस्तिमाल करनेसे बदनकी बीमारी रफा होतीहै, और ताकातबढतीहै, जोलोग हमेशां गादीतकीयेके सहारेवेठे रहतेहै और अपने जिस्मको तकलीफ नहीदेते, यादरहे ! बीमारी उनके लिये हमेशां हाजिररहतीहै, क्योकि उनके जिस्मसे पसीनावहार नहीहोसकता,
२-शास्त्रमें सुनतेहो राजेमहाराजे लोग जब शुभहको उठतेथे अपने बदनकी शुस्ति रफा करनेकेलिये पहलवानोसे कुस्ती किया। करतेथे, कल्पसूत्रके मूलपाठमें देखलो सिद्धार्थराजाकेलिये क्या बयान लिखाहै, ? अलबतां ! जइफोंकों कसरत करनेकी कोई जैसी चंदा जरूरतनही, जोलोग दंडपेलते है उठवेठ करतेहै अंसी कसरत नादानीकी करसतहै, जब किसीके बदनमें कसरत करनेसे कुछपसीना आजाय तो उसवख्त गंदीहवासे अपने जिस्मको जरुरवचानाचाहिये, हरेकशख्शको मुनासिबहै अपनी हाजत रवाइको दुरज
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