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सवाने-उमरी. होकर बालापुर गये. और गर्मीयोंके दिनोमें वहांपर कयामकिया, आषाढसुदी पंचमीकेरौज बालापुरसे रवानाहोकर आकोला आये, और संवत् (१९६०) की वारीश वहांपर गुजारी. व्याख्यान धमशास्त्रका हमेशां करतेथे,-किताव जैनसंस्कारविधि-यहां-बनाइ.
औरवास्ते छपनेको भेजी, अंगविद्या-और-प्रवचनसारोद्धार यहां बाचे, संगीतकलाका इल्म यहांभी हासिल करतेरहे, इनदिनो जैन एशोशिएशन-औफ-इंडिया-ओफिस बंबइसे महाराजके नामपर एक-खत-आया, उसमे लिखाथाकि-मुल्क-अमरिकासे एक विद्वान् लिखतहै-“ Jainsm ” आर्टिकल करीब दोहजार शब्दोमें
और-" Life of Tirthanker Mahavir " आर्टिकल करीब एक हजार शब्दोमें लिखभेजे-तो-हम-अपनी बनाइहुइ किताबमेंउसकों जैनमजहबके बयानमें दर्ज करेगे, इसलिये आप दोंनो आर्टिकल आठ रौजमें लिखभेजे तो बडी महरबानी होगी, महाराजने दोनो-आर्टिकल आठरौजमें तयारकरके जैन-एशोशिएशन ओफ-इंडिया ओफिस बंबइकों यहांसे भेजे.
[संवत् १९६१ का-चौमासा-शहर-जबलपुर,]
बादवरीशके आकोलेसे रवाना होकर बुरानपुर गये, और करीब दो-महिनेके-वहांपर कयाम किया, वहांसे खंडवाला लाइन होकर तीर्थ मांडव गढकी जियारतके लिये महुकी-छावनी गये,
और वहांसे खुश्की रास्ते (१८) कोसके फासलेपर मुकाम-मांडवगढ जाकर जियारतकिइ और तवारिख वहांकी अपनी नोटबुकमें दर्जकीइ मांडवगढसें वापिस आकर महुकी छावनीसे रैलमें सवार होकर रतलाम-गोधरा-लाइनके रास्ते अहमदाबाद टेसन होतेहुवे आबुरोड टेसन उतरे, आबु पहाडपर जाकर वहांकी जियारत किइ,
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