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सवाने-उमरी. इनकेचचासाहब मूलचंदजी दसकोशतक सामनेगये, और इसअंदेशेसे अपनेभतीजेको कुछभी सख्तवातनही किइकि-इनकादिल नाराज-न-होजाय. मगरजब भावनगरमें आयेइनकी बहुतहांसी हुइ, ख्याह-दोस्त-या-रिस्तेदारलोग-औरउनकी औरतेंभीइनसे तानाजनी करनेलगीकि-वाह ! वाह ! ! आपतो साधुहोगयेथे, अब क्यौं वापिस दुनियादारीकेकामोमें आये, ? महाराज बेशक ! उस वख्तबहुतशर्मीदेहुवे. मगर अमरलाचारी चचासाहब और दिगर रिस्तेदारोंके दो-सालतक-दुनियादारीकी हालतमेरहे, और अपने मुसम्मीमइरादेकों नहीछोडा, इसअर्से में महाराजश्री आत्मारामजीआनंदविजयजीसाहब-और-महाराजश्री लक्ष्मीविजयजीके खत इनकेपास आयाजायाकरतेथे और-येभी-उनकों बराबर जवाबदेतेरहतेथे, जाहिरातमें तो ये-दुनियादारीकेकामोमें मशगुलथे-मगर अंदरुनी इरादाइनका उसीतर्फलगाहुवाथा. और अकसरलोगऐसा कहाकरतेथेकि-ये-फिरसाधुहोजायगें, और इनकोंरातदिन यही ख्यालरहताथाकि-में-इनदुनियादारीके कामोंसे छुटकरकब अपने असलीइरादेकों पुराकरु, हमेशां देवपूजन--सामायिकप्रतिक्रमणचौदहनियम-और-परमेष्टिमहामंत्रका जाप कियाकरतेथे. इनकों पापके कामोंसें अजहदपरहेजथा.
इनके चचासाहबने इनकीसादीकेलिये बहुतकोशिशकिइ-मगर ये-उनकों-साफजवाबदेतेथेकि-में-सादी नहीकरनाचाहता. क्यौंकि-मेरारहना इसदुनिया में चंदरौजकाहै. इनके चचासाहबके कोइ लडका नहीथा इसलिये उनका स्नेह अपनेभतीजेपर ज्यादाहोना एकस्वाभाविकबातथी. हमारेचरितनाकको-स्वरोदयज्ञानसे वर्ताव करना लडकपनसेही स्वभावया. चंदस्वरमपानी-दुध-वगेरापीतेथे. और सूर्यस्वरमें खानाखातेथे. और अकसरअपने दोस्त और रि
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