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सवाने-उमरी.
( ५ ) स्तेदारोंकेशाथ दुनियादारीकेकामोंमें मशगुलरहतेथे, मगर दिल इनका अपनेअसलीइरादेपरथा, जबकभी दोस्तलोगोकेशाथ मजहवीवातपर बहेसहोतीथी-ये-फौरन ! उनकों जवाबदेतेथे धर्मसच्चा है. और सुख दुखमिलना अपनेअपने कियेहुवे कर्मों का फलहै, असलमें इनकीदलीले आलादर्जेकी तेजथी. कभीकभी ऐसामौकाभी आनपडताथाकि-रातकेबख्त--इनकेदोस्त किसीमकानमें अलायधा जमाहोतेथे-और-जब रात्रीभोजनकरने-न-करनेकेवारेमें वहेसहो. तीथी-तब-ये-जवावदेतेथेकि-जैनशास्त्रोमें रातकारखाना मनाहै, दोस्तलोग कहतेथे जिसचीजमें दिनमें जीवनही है-तो-रातको कहांसेआगये ? जवाबमें फरमातेथे-कितीशख्शने समझो रातकेवख्त एकलोटेमें पानीभरकरपिया, उसलोटेमें सेंकडोचीटीयां बसबबठंडकके फिररहीथी, पानीकेशाथ पीनेवालेशख्शकेपेटमें-वे-सेंकडोचीटीयां चलीगइ. बतलाना चाहिये रातकेवख्त खानपानकरनेसे अपनाऔर दुसरेजीवोंका विगाडहै-या-नही, ?-सबुतहुवा रातके वख्त खानपानकरना-खौफ-व-खतरसेमराहै. इसीलिये जैनशास्त्रोमें रात्रीभोजन करना मनाफरमाया, जैसेमकानमें हमेशांचोरीका होनासंभव-नहीहोता, मगर-तोभी-हरेकशख्श अपनामकान बंद करके सोताहै इसीतरह-धर्मकों चाहनेवालाशख्श रातकोंखानापीना बंदरखे इसीमेउसकाभलाहै, ऐसीऐसीदलीले हमेशांहोतीरहतीथी, कभीकभी जब दौलतकेबारेमें बहेस होतीथीतबभी-यही जवाबदेतेथेकि-दौलतभी मुकाबिले धर्मकेकोइ चीजनही,
इसतरह इनोने दुनियादारीके काममें तीनवर्षगुजारे. औरजब इनके चचासाहब-शहर-भावनगरसें-तीर्थ शत्रुजयकी जियारतको गये इनोनेकिसीसे जाहिर-न-करके संवत् (१९३५) फाल्गुनसुदी पंचमीकेरौज मुल्कपंजावतर्फ जानेकेलिये घरसें रवानाहुवे, क्योंकि महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीसाहब-और महाराजश्री
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