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सवान-उमरी. सवान-उमरा.
लक्ष्मीविजयजीसाहव-उसवख्त मुल्कपंजाबकी सफरमेथे. जिनके पास इनोने पेस्तर दीक्षाइख्तियार किइथी, शहरभावनगरसे रवाना होकर शामकों गोघाबंदरपहुचे, जोकि-सातकोशके फासलेपर वाकेथा. दुसरेरौज वहांसे जहाजमें सवार होकर मुरतगये. सुरतसे ब-जरीये रैलके-बंबइ-और-चंबइसे भुसावल-खंडवा-हरदा-जबलपुर-इलाहाबाद-गाजियाबाद-मेरट-अंबाला-लुधिहाना-होतेहुवे मुल्क पंजाबमें जालंधर टेशन पहुचे. और वहांसे (१८) कोशके फासलेपर जो होशियारपुरशहरथा-जहां महाराजश्री आत्मारामजी आनंदविजयजी-साहब ठहरेहुवेथे उनसेजाकर फाल्गुनसुदीतेरसकी शामकों मिले. और एकमहिना उनकी खिदमतमें रहे, जब-मलेरकोटके श्रावकोने गुरुजीकों अरिजा भेजाकि-आप-हमारे शहरमें तशरीफ लावे और इनको चेलाबनावे, गुरुजीकेशाय-ये-मलेरकोट गये और वहांकेलोगोने बडी शानसौकतसे इनका जलसा किया, *संवत् (१९३६) वैशाखसुदी (१०) गुरुवारकेरौज-दिनके दस बजे-मिथुनलग्नमें गुरुजीने इनकों दीक्षा दिइ, और इनका नामशांतिविजयजी-रखा, यह दीक्षा इनकी दोबारा समझीये,EF [जैनमुनियोंके कायदे निचे बतलायेजाते है,
किसी रुहकों कतल नहि करना-(यानी) चीटीसेलेकर हाथीतक किसीकों मारनानही. जूठकभी बोलनानही, किसीकिसमकी चौरी नहिकरना. इश्कबाजी नहिकरना, किसीतरहका लालच नहि करना. रातको नहिखाना, शराब और गोस्तसे परहेजकरना. और किसीतरहका नसाभी नहीकरना, गांजा-भंग-अफीम-माजुम वगे
*चैतसुदी एकमसे संवत्की शुरुआतमाननेसे संवत् (१९३६)मे महाराजने दीक्षा लिइ ऐसा जानना.
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