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सवाने-उमरी. तिकी सफर-न-करेगें, इनोने यहबात सुनकर उसीतारिखसे हमेशांकेलिये अपना खानापीना रातकेवख्तका कतइ छोडदिया.
संवत् ( १९३२ ) में जब महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजी-जो-बडे आलिमफाजिल-और-जैनमजहबके बडेपावंद थे-भावनगरमें-तशरीफलाये औरचारमहिने उनोनेअय्याम वारीश कयामकिया उसवख्त-येभी-वास्तेमजहबी वहेससुननेके जायाकरतेथे, चारमहिनेतक हरहमेश व्याख्यानसुनतेरहे, और इनका एतकात धर्मपरवढा. और यहभीदिलमें मुसम्मीमइरादा करलियाकि-दुनयवी-कारोबारछोडकर दीक्षालेना बहेत्तरहै, बादवारीशके जब महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीसाहब-करीबएक हजारभावकलोगोकेशाथ तीर्थगिरनारकी जियारतकों-पांवपैदल जानेपरआमादाहुवे इनके चचासाहब मूलचंदजीने अपनेरिस्तेदारोकेशाथ इनकोंभी तीर्थगिरनारकी जियारतकेलिये भेजदिये, भावनगरसेरवानाहोकर शत्रुजय-तलाजा-महुवा-दीव-वेरावलपटनमांगरोल-धोरांजीहोतेहुवे तीर्थगिरनारकों पहुचे. औरवहांकी जियारतकिइ, बादचंदरौजके जबतीर्थ गिरनारसे रवानाहोकर शहर जामनगरकों गयेऔर वहांकीभी जियारतकिइ, वहांसे महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीसाहब-मुल्कपंजाबकों जानेकलिये तयारहुवे, और भावनगरके श्रावकलोग अपनेवतनकों लोटनेलगे. उसवख्त इनोने दोकोशपर एकधुवावनामकेगांवमें जाकरदीक्षा इख्तियारकिइ, दुसररोज रिस्तेदारोनेतलाशकिइ और इनकोअपनीसोबतमें नहींदेखे-तो-मालूमहुवाकि-इनानेदीक्षा इख्तियारकर लिइहै, रिस्तेदारलोग इनकेपास आयेऔर इनकासाधुपनेका वेष | अलगकरदिया, झोलीपात्रेखोसकर इनको वापिसजामनगरमैलाये. ', और अपनेशाथ भावनगरकोलेचले, औरजब-ये-भावनगरमें आये
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