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सवाने-उमरी. जब इनकी उमर बारांसालकी हुइ वाल्दाका इंतकाल हुवा. सीर्फ ! चचासाहब-और-चचीसाहिबा इनकीपरवरीशकेलिये मौजूदथे. और उनोने इनकों दिलोजानसें परपरीशकिआ चौदहवर्षकी उमरमेंइनोने सातगुजराती किताबेंपढकर इल्मअंग्रेजीपढना शुरु किया. और दोसालमें अंग्रेजीकी तीनकिताबें पढली. शहरभावनगरमें जो जैनमजहबीमदर्सा जारीथा वहांभी जाकरमजहबी इल्मपढतेथे. अछीअछी नजीरे अपनेमजहबकी जो-आलिमफाजिलोंकी बनाइ हुइथी-जबानी-याद करतेथे, जबकभी दोस्तोकेशाथ-हवाखोरीकों या-खेलकरनेकोंजातेथे यहीकहाकरतेथेकि-दुनिआमें धर्म एक-आलादर्जेकीचीजहै. और दुनयवीकारोबार उसकेपीछे है, एक सुखी एक दुखी-एक अमीर-और-एक गरीब-यहसब पूरवजनमके किये हुवे पुन्यपापका फल है. दोस्तलोग इसवातकों सुनकरहसतेथे और कहतेथेकि-अगर-एसेहीधर्मपावंद बनतेहो-तो-हवाखोरीकों-क्यों आये ? साधु होजानावहेतरहै.-उनके जवाबमें--यही-फरमातेथेकब-बहदिन आवे, और-में-साधु बनु.
अठारहवर्षकी उमरमें पंचप्रतिक्रमणे-पूजन-जिवविचार--नवतत्व-दंडक-कर्मग्रंथ-क्षेत्रसमान-और-स्वरोदयज्ञान वगेरा जबानी हासिल करलियेथे,-अकसर जब शहरभावनगरमें कइ जैनमुनिमहाराज आयाकरतेथे तब-ये-उनकी खिदमतमें मशगुलरहतेथे, और शहरकेआदमी इनकोलिये अकसर कहाकरतेथेकि-क्या ! आपभी साधु होजाओगे. ?-एक वख्तका जिक्रहै जब महाराजश्री वृद्धिचंदजीसाहब-जो-बडे आलिमफाजिल जैनमुनिथे शहर भावनगरमें तशरीफ लाये और उनोने जबव्याख्यान धर्मशास्त्रका वाजकियायेभी-उनके व्याख्यान सुननेकोंगये, और उनोनेजब यहव्याख्यान दियाकि-जो-शख्श-रातकेवख्त खानेपीनेसे परहेजकरेगे बहदुर्ग
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