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(६०) सवाने-उमरी. किइजाय-ताकि-आम जैनश्वेतांबरसंघको फायदा पहुचे. मगरयह बात सब जैन तीर्थोकों वगेर देखे भाले नही होसकती, इसलिये इरादाकियाकि-मुल्कपूरवके जैनतीर्थोकी जियारतकों चले, महाराज सबमजहबोंकी पुस्तके हमेशां शाथरखते है ताकि-जिसजिस मजहबवालोंकों जवाबदेनाहो फोरन दियाजाय, दुसरेशहरोके श्रावक जब-महाराजसे-धर्मकेबारेमें सवालपुछते है-तो-उनकाजवाब ब-जरीये अखबारके ब-खूबीदेते है. इसलिये बहुतसी जैनपुस्तकेभी शायरखना पडती है, महाराजकी व्याख्यानसभामें कोइ अगर शोरगुलकरतो उसकों अपनीसभासे रुकसत करवादेते है इस बातसे कइश्रावक एतराज करते है मगर जो अकलमंदहै-वे-इस बातकी तारीफ करते हैकि-साधुहो-तो-ऐसेहो-जो गरीब और अमीरकों एकसा समझे, व्याख्यानसभामें जब भावनाअधिकारका बननचलताहै-भैरवी-कालिंगडा वगेरा रागरागनीसे व्याख्यान बांचतेहै. और कभीकभी हारमोनियम बजानेवाले शख्श सभामें बेठकर स्वरपुरते है, यहांपर कइदफे महाराजने इसतरह व्याख्यान दियाथा,
[संवत् १९५६ का-चौमासा शहर लखनउ,]
बादवारीशके शहरमंदोरसे रवाना होकर तीर्थमकसीजीकों तीसरी मरतबागये, और जियारतकिइ, तीर्थमकसीसे रवानाहोकर सारंगपुर-बियावरा-गुणा-सीपरी--जहांसी-काल्पी-कानपुर--उभावकी सफर करतेहुवे शहर लखनउ गये, और संवत् (१९५६) की-बारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशा बांधतेथे और सभा अछीभरतीथी, मुल्फ पूरवका खानपान-बोलचाल और-पुशाफ अछा और श्रावकलोग विनयवान देखेगये, निर्यावलीसूत्र और दस प्रकीर्णकशास्त्र यहांपर बांचे, ...,
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