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________________ सवाने - उमरी. ( ५९ ) रना यहां हुवा. और जैनधर्मकी निहायत तरक्की हुई, जिन जिन श्रावकों का खयाल धर्मकेबारेमें डावाडोल होगयाथा महाराजने शास्त्र सबुतदेकर धर्मपर पावंदकिये, अवहम आपकी खिदमतमें यह मानपत्र - और - जैनपताका भेट करते हैं, और परमात्मासे इबादत करते है कि - आपकी - विजय - हमेशां बनीरहे, इसमानपत्र में (८२ ) आगेवान श्रावकोकेशाथ - समस्त - जैन श्वेतांबर संघकी सही मौजूद है, यहां कहांतकलिखे, जिनको देखनाहो- सन ( १८९९ ) मार्च एप्रिलके - जैनदिवाकर - मासिकपत्र - अहमदाबाद - पुस्तक - १४- अंक ५-६ - में देखे, यहांभी उसीसे उतारा लियागया है. - महाराजने ज्योतिष्करंडक - और - आरंभसिद्धिग्रंथ इस चौमासेमें पढे, समवायांग और जीवाभिगमसूत्र बाचे, संगीतकलाका इल्म यहांभी हासिल करते रहे. ( संवत् १९५५ का चौमासा शहर मंदसोर, ) Ararian रतलामसें रवानाहोकर मुकाम जावरा गये, और asiपर पनiह रौजतक कयामकिया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देते थे, जावरेसे खानाहोकर खाचरोदहोते कस्बे बडनगरकों गये, मोशमशर्मा वहांपरगुजारी, बडनगरसे रवानाहोकर शहर मंदसोर आये एकमहिना वहां पर कयामाकिया, मंदसोरसे परतापगढ गये, और ariat aia एकमहिना ठहरे, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देते थे. और आयेगये गृहस्थोकेशाथ धर्मके बारेमे बहस हो - तीथी, परतापगढसे वापिस मंदसोर आये, और संवत् (१९५५) की - बारीश वहां परगुजारी . व्याख्यानमें विविधतीर्थकल्प-औरसमरादित्यचरित बाचा. मानवधर्मसंहिता किताब छपकर तयारहुइ और जिन जिन महाशयोने मंगवाइथी उनकों भेजीगर, इनदिनोंमें महाराजका इरादाहुबाकि जैनतीर्थगाइड किताब - बनाकर जाहिर " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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