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(५६) सवाने-उमरी. जगहहै. भिलसा टेशनसे (५) मील सांची टेशनकेपास कइ बौधस्तूप बनेहुवेहै, भिलसासे रवानाहोकर शहरभोपाल आये, और संवत् (१९५२) की वारीश यहांपर गुजारी, सूत्रअनुयोगद्वार और नेमिनाथचरित व्याख्यानमें वाचा, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति इनदिनो बाचतेरहे, महाराजके उपदेशसे एक-जैनधेतांबर पाठशाळा यहां खोलीगइ, जिसमें जैनश्वेतांबर श्रावकोंके लडके मजहबीइल्म हासिलकियाकरे,
[संवत् १९५३ का चौमासा शहर इंदोर,-]
बादवारीशके भोपालसे रवानाहोकर छावनी सिहोर-नरसिंहगढ-सारंगपुर-साजापुर होतेहुवे तीर्थ मकसीकी जियारतकों गये, जो उज्जेनकेपास मुल्कमालवेमें वाके है, वहांकी जियारतकिइ
और जोजो वजुहात पुरानी तवारिखकेदेखे अपनी नोटबुकमें दर्ज किये, तीर्थमकसीसे रवानाहोकर कस्बा देवासहोते शहरइंदोरकों आये. और संवत् ( १९५३) की वारीश वहांपर गुजारी, गलीमोरसलीमें नये मंदिरकेपास-मकानमे ठहरे. व्याख्यानमें सूत्रआवश्यकत्ति-और-चासुपूज्यचरित बांचना शुरुकिया, सुननेवाले कसरतसें जमाहोतेथे. प्राकृतव्याकरण-यहांपर-हिज यादकिया, सूत्र अंगचुलिका-और-बंगलिका यहां बाचे, और मानवधर्मसंहिता ग्रंथ बनाना शुरुकिया,
(संवत् १९९४ का चौमासा शहर रतलाम, )
वादवारीशके इंदोरसे रवानाहोकर दोबारा तीर्थमकसीकी जियारतकों गये, और वहां करीब (८) रौनठहरे, उसअर्सेमें मुल्कमालवेके बहुतसे जैनश्वेतांवरयात्री-वास्ते जियारतकों वहांपर आयेथे. शहर उज्जेनके जैनश्वेतांवर श्रावकोने महाराजसें बहुतअ
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