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________________ सवान-उमरी. (५७) जमारुज किइकी-आपहमारे शहरमें तशरीफलावे, महाराजने उनकीअर्ज कुबुलकिइ और तीर्थमकसीसे रवानाहोकर मुल्कमालवेके नामीग्रामी शहर उज्जेनकों गये, उज्जेन पुरानाशहरहै, और यहांपर अवंतीपार्श्वनाथका तीर्थ है जियारतकिइ, मोशमशा वहांपरगुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां देतेथे. सभा अछीभरतीथी, उज्जेनके श्रावकोने महाराजकी बहुतकदर और खिदमत किइ, उज्जेनसे रवानाहोकर कस्बे वडनगरकों गये, और वहां करीब (१) महिनेके कयामकिया, श्रीयुत-मोहनलालजी लक्ष्मीचंदजी-कुशलगढवाले-यहांपर मिले, और धर्मचर्चाके बारेमें बहुतसे सवालपुछे, महाराजने उनका माकुल जवाबदिया, और उनोने दोहे-कवित्त बनाकर महाराजकी इसतरह तारीफकिइ, (दोहा.-) नामशांति गुनशांतहै-शांतिमुनि अनगार, अशुभकर्मकृतविनको-शांतिकरन दातार, चिंतामनिसम शांतिमुनि-रंगे अधिक वैराग, पंचममे परगट भये-भविजनकेरे भाग्य. (कवित्त.) महावीरशासनके उन्नतिकरनहार-धर्मके धुरंधर ऐसे मुनिराजहै, कुमतिमद हस्तिनके कुंभस्थलफोरवेंको-पंचाननराजसमजिनकेशिरताज है ज्ञानजलदाता उलसाताभविवारिजके-अचलदृढरंगमयजिनका समाजहै मोहनमनमाने-तीनलोकमें-नछाने-ऐसेसुगुरुसयानविजयशांतिमहाराजहै, ___ वडनगरसे रवानाहोकर महाराज-शहर-रतलामकों तशरीफ लेगये, और संवत् (१९५४)की वारीश वहांपर गुजारी, जैनश्वेतावर श्रावकोकी आबादी यहांपर ज्यादहहै, व्याख्यान सभा अछी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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