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( १३६ ) तवारिख-पंचतीर्थी. बहार दोनोंतर्फ दोबडेबडेहाथी-पथरकेबनेहुवेखडेहै दरवजेमे घुसते बायीतर्फके हाथीकेनजदीक एकशिलालेख-खडाहै जोकरीब देव गजलंबा एकहायचोडा-उसपरलिखाहै-संवत् (१६८६) पोषवदी अष्टमी शुक्रवारकेरौज मेदपाटके अधीशराणाजगतसिंहजीने तपगछाचार्य-विजयदेवसरिके वचनसे मेलेकदिनोंमें चाररौजका महेसूल माफकिया, पोषवदी-८-९-१०-११-तकमेला यात्रीयोंका यहां जमाहोताहै उनका मेहसूललेना छोडदिया,
दरवजेकेभीतर चौकमें एकबडाहाथी पथरकाबनाहुवा ठीकमूलनायकजीके सामने-खडाहै, मंदिरकीचारोंतर्फ दिवारमें जोजो कारीगरी किइहै लाइकतारीफकेहै, देखकर दिलनहीचाहताकि-यहांसे-बहारचलेजाय, मंदिरकेचौकमें तीनशिलालेख संवत् (१८०६) के लिखेहुवे खडे है मगरइनमें मंदिरकेबननेका कोइजिक्रनही, सीर्फ ! इनवातोंका जिक्रहै जोउसअर्सेमें यहांकेलोगोने इकरारकियाथा, जवमंदिरके रंगमंडपकेदरवजेपर पहुचोगे निहायत उमदाकारिगिरी नजरआयगी, रंगमंडपबहुतबडा-और-नवचौकीके एकखंभेपर शिलालेखलगाहुवाहै मगरजहांपर संवत् लिखाहुवारहताहै-वो-जगह टुटगइहै, बहुतगौरकेशाथदेखागयातो संवत् (१२११) लिखापाया, आगेकेहर्फभी टुटेहुवे है अछीतौरसे पढेनहीजाते. सबुतहुवामंदिर बारांसोग्यारहके पेस्तरका वनाहुवाहै, मूलनायककी मूर्ति के सामने
और नवचौकीके खंभेकेपास एकहाथी पथरका बनाहुवा-औरउसकेउपर एकशेठशेठानीकी-मूर्ति जायेनशीनहै, लेखइसपरनहींमगर यहांके वाशिंदोमें यहबात मशहुरहैकि इनोने यहमंदिर तामीर करवायाथा मूलनायक तीर्थंकर पार्श्वनाथभगवानकी करीब एकहायबडीमूर्ति-मयफणके निहायत खुबसुरत-तख्तनशीन है; इसपर कोइलेखनही मगरनिशानात् राजासंमतिके जमानेकेपाये
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