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________________ तवारिख-पंचतीथी. (१३७ ) जाते है, चारोंतर्फ इसके-जो-पीतलका परिकरलगाहुवाहै संवत् (१७०७) का-बनाहुवाहै, मंदिरके आलोमे-छोटेछोटे-जिनालयोंमें और रंगमंडपमें कुल्लमूर्तिये करीब (२००) के-है, दर्शन करके दिलखुशहोगा-मानो! स्वर्गमें आनखडे है, खुशनसीबोने कैसेकैसे आलिशानमंदिरबनवाये है यहांपर वगीचा-एक-बडागुलजार जिसमें गुलाब-चंपा-जाइ-जुइ-चमेली-डमरा-मरुवा-वगेराकेफुल हमेशा ऊतरतेहै और देवपूजनमें चढायेजाते है, फलोमें आम-नींबु-नरंगी-अनार-केलेवगेरा यहां पैदाहोते है, बयान-वरकाणातीर्थ-खतमहुवा, वरकाणासें रवानाहोकर यात्री नाडोल जावेजो अठाइस कोशके फासलेपर एककस्वाहै, जैनश्वेतांबर मंदिर इसमें (६)-जिनमे तीर्थंकर पदमप्रभुका शिखरबंद मंदिर निहायतपुराना और मूर्ति इसमें राजा-संपतिकी बनाइहुइ तख्तनशीनहै, दुसरा और तीसरा मंदिर इसीवडे मंदिरमें सामीलहै, चोथामंदिर तीर्थकर नेमनाथजीका पांचमा शांतिनाथजीका-और-छठा तीर्थकर पार्श्वनाथजीका बतौर चैत्यालयके बनाहुवा, शिवायइसके उपाश्रयमेंभी कइधातुकी मूर्तिये जायेनशीनहै. जैनश्वेतांबरश्रावकोंके घर-धर्मशाला-और-खानपानकी चीजेयहां सब मिलसकतीहै. बयानतीर्थ-नाडोल-खतमहुवा. नाडोलसें रवानाहोकर नाडुलाइकस्बेकों जाना, जोकरीब (३) कोशके फासलेपर वाकेहै, श्रावकोकघर यहां बनीस्पतनाडोलके ज्यादह-धर्मशाला उमदा और मंदिरभी छोटेबडे मिलाकर (११) है, इनमे (२) मंदिर गांवकेबहार और (९) भीतरहै, भीतरमंदिर बडीलागतके-पुराने और-एकएकसे आलाबने हुवेहै, एकमंदिर जो दरवाजेकेपासहै, मूलनायक तीर्थकररिषभदेवभगवानकी मूर्ति इसमें निहायतखूबसुरत-तख्तनशीनहै, यहांके लोगोमें यहबातमशहरहैकि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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