SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुलदस्ते-जराफत. . ३७-किसी चेलेने अपने गुरुजीसे पुछाकि-महाराज ! जब ममकों तकलीफहोती है-तो-आंखें क्यौरोती है, ? गुरुजीने कहा मन और आंखोंका अर्थावग्रहहै, व्यंजनावग्रहनही, शरीर-जवान-नाक और-कान-प्राप्यकारी है, नेत्र और-मन अप्राप्यकारी है, यही वजहहैकि-जब-मनकों तकलीफ होती है, आंखे रोदेती है, जैसे कोइपडोसीकों किसी किसमकी तकलीफ होजाय तो पासरहने वालेकोंभी रंजहोताहै, आंख और मनके दरमियानभी यहीबातहै, अकलमंदोकों मुनासिबहै जबकभी किसी किसमकी मुसीबत आनपडे हरचंद हिंमत-न-हारे, जो लोग हिंम्मत हारजातेहै-वे-जमामर्दनही,___ [रास्तेकी तलाशीपर किसानकी हाजिरजवाबी] ३८-एक मरतबेका जिक्रहै, एक साधुमहाराज किसी शहरसें रवाना होकर दुसरे शहरकों जारहथे, इत्तिफाकन ! रास्ता भुलगये एककिसान-जो-अपने खेतमें हल जोतरहाथा, पूछाकि-फलांगांवका रास्ता किसतर्फ है, ? किसान हाजिर जवाबथा, कहनेलगा आपतो परलोकका रास्ता बतलानेवालेहो, क्या ? इसलोकका रास्ताभी आपको मालुमनही, ? साधुमहाराज बोले, वेशक ? जो केवलज्ञानी-या-अवधिज्ञानी होते है उनको जरुर मालुम होताहै, किसान हसा, और कहनेलगा मेनेतो आपके शाथ एक दिल्लगी किइथी, यह देखलो रास्ता यही है, इसी रास्तेसे चलेजाओ, अगर ख्वाहेसहोतो यह खेतभी आपकाही है यहां ठहरो, [एक नजुमी पंडितकी चालाकी, ] गुवी भूपवशैकदास्ति नृपति विप्रं तदा पृछति, पुत्रः किं च सुता भविष्यतिहि मे पुत्रो नहीत्यंगजा, संलेख्य छदने ददौ नरपति पुत्रो भविष्यत्यथ. पुत्री चेद्यदि वाशु दीर्घलघुकान् कृत्वा तु वक्ष्येक्षरान् , Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy