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________________ (८) तवारिख-तिर्थ-गिरनार. ली-गांव-बगीचे-और-शहरजुनागढ सामनोदखपडताहै, इसटोंकके दर्शनकरके यात्री वापिस आनेका इरादाकरे. गजपदकुंड-सूर्यकुंडतरहतरहकी वनास्पति-और-जडीबूटीयें यहांपरखडीहै, कहांतक कोइबयानकरे. पांचवीटोंकसे चौथीटोंक-और-चौथीटोंकसें तीसरी, तीसरीसे-दुसरी-और दुसरीसे पहेली-इसतरह जिसरास्ते गयेथे उसीरास्तेहोकर नीचेतलहटीपरआजाय,-यहांपरकयामकरनाहो-बेशक ! करे-या शहरमेंजानाहो शहरमेंजाय, गिरनारपहाडकाचढाव तलहटीसें पांचमीटोंकतक (६) मील-आतेजाते (१२) मीलहुवे. शुभहकोंगयेहुवे यात्री शामकों ब-खूबीवीछे-लौटसकतेहै,- . - छत्रपतिमहाराजसंपति-छत्रपतिमहाराज कुमारपाल-दिवान वस्तुपाल तेजपाल-और-संग्रामसोनी-जिनके तामीरकरवाये हुवे जैनमंदिर यहां मौजूदहै.-वे-सब जैनश्वेतांबर आम्नायके श्रावकथे, सुरासुरा अप्यतुलप्रमाणं-नमंतिबद्धांजलयो यमुच्चैः, ध्यायंतियं योगविदोहृदंतः-तं नेमिनाथंप्रणतस्तवीमि, अनुष्टुप-वृतम्] स्थानेदेशः सुराष्ट्राख्यो-विभर्ति भुवनेप्यसौ, यद्भूमिकामिनीभाले-गिरिरेषविशेषकः, सहस्राम्रवनं लक्ष्यारामोन्यपि वनवजाः, मयूर कोकिला गी-संगीतसुभगाइह, नदीनिर्झरकुंडानां-खनीनां विरुधामपि, ... विदांकरोचात्रसंख्या-संख्यावानपिकःखलु, . . . रैवताद्रिमणिरत्न-किरणैर्धनवर्णकः, अयत्नं चित्र निर्माण-मासीत्तत्रजिनालये, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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