SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुलदस्ते-जराफत. (३८५ ) गरजकि-बापबेटे-अपना मतलव करके आगे बढे पीछेसे लोगोको मालुम हुवा किसीकी सोना महोर पडीहुइ देखकर बुढेने यहकाम कियाथा, [ दोस्तोंकी बातचित,] २१-किसी शख्शके पांचलडकेथे और-वे-अपने वालिदके पास खेलरहेथे, इतनेमें एक दोस्त उसका वहां आन पहुचा, और बातें होनेलगी, पांचलडकोंका बाप कहनेलगा आजकल एकरुपयाभी-में-पैदा-नही करसकता, दोस्तने कहा वजाहै, मगर यहतो बतलाइये फिर पांच लडके कैसे पैदा किये, ? पांचलडकोंका बाप बोला, खुबकहा, में-क्या कहताहु और आप जवाब क्यादेरहेहो जैसा किसीने कहाहै, ''पुछी जमीनकी-तो-कही आस्मानकी," [एक घोडे सवारका मजाक,-] २२-एक शख्श घोडपर सवार होकर जंगलकी तर्फ घास लानेके लिये गया, और घासकी गठरी बांधकर अपने सीरपर रखी, और घोडेपर सवार हुवा, जब-वह-गांवके करीब आया एक शख्शने पुछा कि-आपने-घासकी गठरी सीरपर क्यों रखी है, ? सवारने जवाब दिया घोडेकों ज्यादह बौज-न-लगे इसलिये सीरपर रखी है, मुलाकाती आदमी बोला, तारीफ है आपकी उमदा अफलपर, अकलमंद होतो जैसे हो, [दुनियाकी हिसका किस्सा, ] कश्चित् काननकुंजरस्य भयतो नष्टः कुवेरालय शाखासु ग्रहणं चकार फणिनं कूपे त्वधो दृष्टवान् वृक्षो बारणकंपितोपि मधुनो बिदू नितो लेढी सः तल्लुब्धोमरशब्दितोपि-न-ययौ संसारसक्तो यथा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy