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तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. ( ३७ )
जैनश्वेतांवर श्रावककरीब [४००] और-जैनश्वेतांबरमंदिर-बडाचौटा-नाणावट-गोपीपुरा-छापरियासेरी--हरिपुरा-नयापुरा वगेरामें बडीवडीलागतके बनेहुवे है, और उनमें-बडीवडीआलिशानमूः तख्तनशीनहै. कइजगह मिनाकारीकाम-और-उमदाचित्रकारी देखकरदिल तर-व-जाहोगा, मकान-साधुलोगोकेठहरने के बडे चौटमें-और-गोपीपुरा वगेरावनेहुवे है. धर्मशाला-शेठ--प्रेमचंद रायचंदकी जैनश्वेतांबर यात्रीयोंकेलिये आरामकी जगहहै, यात्रीलोगवहांकयामकरे. कोइमनानही, टेशनसे एक मिलके फासलेपर शहरकी आबादीशुरुहै, बाजार गुलजार और जिसचीजकी दरकारहो यहां मिलसकती है, सोना-चांदी-जवाहिरात-मेवामीठाइ-और-उमदा रेशमीकपडे जैसेचाहिये यहांपरमिलसकेगे. मुरतकीवी मुल्कोंमेंमशहूर है, सल्मेसितारेका काम यहां इसकदर उमदावनताहै जिसकीतारीफ वेंमीशलहै. तापीके सामने कनारे कस्वा-रांदेर-एक गुलजारवस्तीहै, मर्दुमशुमारी (१०९२६) मनुष्योंकी-दो-जैनश्वेतांवरमंदिर-और-कइ-जैनश्वेतांवरश्रावक यहॉपर आवादहै, हमने संवत् (१९४२) मे-सुरतशहर देखा-और -वहांचौमासाभी कियाहै. सूरतसें-अमरोली-सायन-कीम-कोसंबा -पानोली-और-अंकलेश्वर-होतेहूवे भरुच-जाना, रैल किराया आठ आने. [तवारिख-अश्वावबोधतीर्थ औरशकुनिकाविहार ]
भरुअछका दुसरानाम अश्वावबोध तीर्थहै, संस्कृतजवानमें घोडेकों अश्व-बोलतेहै. तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीने यहां एक-योडेको तालिमधर्मकी दिइथी-और-उसकों-ज्ञानहुवाथा-इसलिये इसका नाम अश्वाववोधतीर्थकहलाया. जमानेहालमें मनुष्यों को भी ज्ञानहोनादसवारहोगया- जानवरोंकों कैसे हो, ? पेस्तर जानवरों
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